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गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

कुछ अनुभूतियाँ

 

कुछ अनुभूतियाँ

 

1

रात रात भर जग कर चन्दा

ढूँढ रहा है किसे गगन में ?

थक कर बेबस सो जाता है

दर्द दबा कर अपने मन में |

 

2

बीती रातों की सब बातें

मुझको कब सोने देती हैं ?

क़स्में तेरी सर पर मेरे

मुझको कब रोने देती हैं ?

 

3

कौन सुनेगा दर्द हमारा

वो तो गई, जिसको सुनना था,

आने वाले कल की ख़ातिर

प्रेम के रंग से मन रँगना था।

 

4

सपनों के ताने-बानों से

बुनी चदरिया रही अधूरी

वक़्त उड़ा कर कहाँ ले गया

अब तो बस जीना मजबूरी   

 

-आनन्द.पाठक-

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
    'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. हृदय स्पर्शी! विरह श्रृंगार का अनुपम सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  3. बीती रातों की सब बातें

    मुझको कब सोने देती हैं ?

    क़स्में तेरी सर पर मेरे

    मुझको कब रोने देती हैं ?

    अत्यंत हृदयस्पर्शी पंक्तियों

    जवाब देंहटाएं