कुछ अनुभूतियाँ
1
रात रात भर जग कर चन्दा
ढूँढ रहा है किसे गगन में ?
थक कर बेबस सो जाता है
दर्द दबा कर अपने मन में |
2
बीती रातों की सब बातें
मुझको कब सोने देती हैं ?
क़स्में तेरी सर पर मेरे
मुझको कब रोने देती हैं ?
3
कौन सुनेगा दर्द हमारा
वो तो गई, जिसको सुनना था,
आने वाले कल की ख़ातिर
प्रेम के रंग से मन रँगना था।
4
सपनों के ताने-बानों से
बुनी चदरिया रही अधूरी
वक़्त उड़ा कर कहाँ ले गया
अब तो बस जीना मजबूरी
-आनन्द.पाठक-
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद आप का
हटाएंसादर
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी धन्यवाद
हटाएंहृदय स्पर्शी! विरह श्रृंगार का अनुपम सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आप का
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप का
हटाएंबीती रातों की सब बातें
जवाब देंहटाएंमुझको कब सोने देती हैं ?
क़स्में तेरी सर पर मेरे
मुझको कब रोने देती हैं ?
अत्यंत हृदयस्पर्शी पंक्तियों
नवाज़िश आप की
हटाएंसादर
सुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंकृपा आप की
जवाब देंहटाएंसादर