ख़त्म अब राबते सब
आज उसके दर से करते है
चल ज़िंदगी..चल
आज अपने घर को चलते है ..
ज़ख्मी है रातें
रूठे है दिन ये
शामें उदास है
कुछ उसके बिन ये...
पर, बीतें लम्हों का चल,
आज कोई गम न करते है ....
हौसला हर घड़ी हर शाम ,
हर सहर में भरते है ...
चल ज़िंदगी..चल
आज अपने घर को चलते है ..
ख़त्म सब राबते चल
आज उसके दर से करते है
झूठे थे वादें
और झूठे इरादे
वफ़ा को ऐसी
भी क्या कोई सजा दे ?
पर, उलझने चल आज दिल की
थोड़ी कम सी करते है ....
ज़िंदगी उड़ान है , उड़ान फिर
खुले अंबर में भरते है ...
चल ज़िंदगी..चल
आज अपने घर को चलते है ..
ख़त्म सब राबते चल
आज उसके दर से करते है
~संध्या राठौर
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी मुझे खुशी है रचना आपको पसंद आई
हटाएंवाह ! दिल के अरमानों से जब कोई सब राबते ख़त्म कर लेता है तब ही तो घर जा पाता है
जवाब देंहटाएंवाह निज घट यात्रा ही जीवन है, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
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