चन्द माहिया : क़िस्त 12
:1:
दीदार न हो जब तक
यूँ ही रहे चढ़ता
उतरे न नशा तब तक
:2:
ये इश्क़ सदाकत है
खेल नहीं , साहिब !
इक राह-ए-इबादत है
:3:
बस एक झलक पाना
मानी होता है
इक उम्र गुज़र जाना
:4:
अपनी पहचान नहीं
बाहर ढूँढ रहा
भीतर का ध्यान नहीं
:5:
जब तक मैं हूँ ,तुम हो
कैसे कह दूँ मैं
तुम मुझ में ही गुम हो
-आनन्द.पाठक
09413395592
:1:
दीदार न हो जब तक
यूँ ही रहे चढ़ता
उतरे न नशा तब तक
:2:
ये इश्क़ सदाकत है
खेल नहीं , साहिब !
इक राह-ए-इबादत है
:3:
बस एक झलक पाना
मानी होता है
इक उम्र गुज़र जाना
:4:
अपनी पहचान नहीं
बाहर ढूँढ रहा
भीतर का ध्यान नहीं
:5:
जब तक मैं हूँ ,तुम हो
कैसे कह दूँ मैं
तुम मुझ में ही गुम हो
-आनन्द.पाठक
09413395592
आ0 शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंरचना को स्थान देने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
आनन्द पाठक
सार्थक रचना
जवाब देंहटाएं