1:
कहने को याराना
वक़्त ज़रूरत पर
हो जाते हैं बेगाना
:2:
तुम से ही लगी है लौ
आना चाहो तो
आने की राहें सौ
:3:
रह-ए-इश्क़ में हूँ गाफ़िल
दुनिया कहतीहै
मंज़िल है ला-हासिल
:4;
तेरी जो तजल्ली है
अब भी है क़ायम
इस दिल को तसल्ली है
:5;
जुल्फ़ों को सुलझा लो
या तो इन्हें बाँधो
या मुझको उलझा लो
[तजल्ली =ज्योति.नूर-ए-हक़]
-आनन्द.पाठक
09413395592
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (25-01-2015) को "मुखर होती एक मूक वेदना" (चर्चा-1869) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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