चन्द माहिया : क़िस्त 43
:1:
जज्बात की सच्चाई
नापोगे कैसे
इस दिल की गहराई
:2:
तुम को सबकी है ख़बर
कौन छुपा तुम से
सब तेरी ज़ेर-ए-नज़र
:3:
इक तुम पे भरोसा था
टूट गया वो भी
कब मैने सोचा था
:4:
इतना जो मिटाया है
और मिटा देते
दम लब तक आया है
:5:
कितनी भोली सूरत
जैसे बनाई हो
ख़ुद रब ने ये मूरत
:1:
जज्बात की सच्चाई
नापोगे कैसे
इस दिल की गहराई
:2:
तुम को सबकी है ख़बर
कौन छुपा तुम से
सब तेरी ज़ेर-ए-नज़र
:3:
इक तुम पे भरोसा था
टूट गया वो भी
कब मैने सोचा था
:4:
इतना जो मिटाया है
और मिटा देते
दम लब तक आया है
:5:
कितनी भोली सूरत
जैसे बनाई हो
ख़ुद रब ने ये मूरत
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-05-2017) को "आम और लीची का उदगम" (चर्चा अंक-2978) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
jee Dhanyvaad aap kaa Shastri ji
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