:1:
खुद तूने बनाया है
अपना ये पिंजरा
ख़ुद क़ैद में आया है
:2:
किस बात का है रोना
छूट ही जाना है
क्या पाना,क्या
खोना ?
:3:
जब चाँद नहीं उतरा
खिड़की मे,तो फिर
किसका चेहरा उभरा
:4:
जब तुमने पुकारा है
कौन यहां ठहरा
लौटा न दुबारा है
:5:
हर साँस अमानत है
जितनी भी उतनी
उसकी ही इनायत है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-05-2018) को "बदन जलाता घाम" (चर्चा अंक-2983) (चर्चा अंक-2969) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद -आप का कुसुम जी
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप का -पथिक जी
हटाएंसाद्र