देश हित के लिए खेलती बेटियाँ
हर कदम पर यहाँ जीतती बेटियाँ
देखिये देश में अब पदक ला रहीं
बढ़ धरा से गगन चूमती बेटियाँ
आन को मान को देश की शान को
हर मुसीबत से हैं जूझती बेटियाँ
बेटियों पर पिता को हुआ नाज़ अब
लग पिता के गले झूलती बेटियाँ
खूबसूरत सुमन सी लगे हैं सदा
बन के खुशबू यहाँ महकती बेटियाँ
घर चलो लौट कर तुम न देरी करो
राह में बस यही सोचती बेटियाँ
आप ‘संजय’ सदा नेह देना इन्हें
हाथ सर पर सदा माँगती बेटियाँ
संजय कुमार गिरि
करतार नगर दिल्ली -53
9871021856
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-05-2018) को "वृद्ध पिता मजबूर" (चर्चा अंक-2979) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी