एक गीत : तुम जितने चाहे पहरेदार बिठा दो---
तुम चाहे जितने पहरेदार बिठा दो
दो नयन मिले तो भाव एक रहते हैं
दो
दिल ने कब माना है जग का बन्धन
नव
सपनों का करता रहता आलिंगन
जब
युगल कल्पना मूर्त रूप लेती हैं
मन
ऐसे महका करते ,जैसे चन्दन
जब उच्छवासों में युगल प्राण घुल जाते
तब मन के अन्तर्भाव एक रहते हैं
यह
प्रणय स्वयं में संस्कृति है ,इक दर्शन
यह
चीज़ नहीं कि करते रहें प्रदर्शन
अनुभूति
और एहसास तले पलता है
यह ’तन’ का नहीं है.’मन’ का है आकर्षण
जब मर्यादा की ’लक्ष्मण
रेखा’ आती
दो पाँव
ठिठक ,ठहराव एक रहते हैं
उड़ते
बादल पर चित्र बनाते कल के
जब
बिखर गये तो फिर क्यूँ आंसू ढुलके
जब
भी यथार्थ की दुनिया से टकराए
जो
रंग भरे थे ,उतर गए सब धुल के
नि:शब्द और बेबस आँखें कहती हैं
दो हृदय टूटते ,घाव
एक रहते हैं
तुम चाहे जितने पहरेदार बिठा दो,दो
नयन मिले तो भाव एक रहते हैं
-आनन्द पाठक-
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जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद
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