मोदी सरकार की एक बड़ी विफलता
लगभग चालीस वर्ष पुरानी बात है. जम्मू-कश्मीर विधान सभा
के चुनाव हो रहे थे. घाटी के अधिकांश लोग बड़े उत्साह के साथ चुनावों में भाग ले
रहे थे.
मेरा एक जानकार था, जिसके बारे में मेरी धारणा थी कि वह
पाक-समर्थक था. मैंने व्यंग्य करते हुए उससे
कहा कि तुम लोग पाकिस्तान की रट लगाये हुए हो और आम जनता तो खूब उत्साह के साथ चुनावों
में भाग ले रही है. उसने हँसते हुए कहा कि
ऐसा न करेंगे तो पैसा कैसे मिलेगा.
मैं पलभर को उसकी बात समझा नहीं. थोड़ा कुरेदा तो उसने
बताया कि कश्मीर में कई ‘लोगों’ को पाकिस्तान से पैसा मिलता है, कुछ को भारत से और
कुछ चालाक लोगों को दोनों तरफ से. उसकी बात सत्य थी या नहीं, उस समय तय नहीं कर
पाया था; पर अब लगता है कि उसका कथन पूरी तरह असत्य न था.
पर आज नई आशंका मन में उजागर हो रही है. ऐसा प्रतीत होता
है कि सिर्फ कश्मीर के ‘लोगों’ को ही नहीं, भारत के भी कई लोगों को पकिस्तान सरकार
ने अपने पे-रोल पर रखा हुआ है. यह लोग राजनीति में हैं, मीडिया में हैं,
विश्वविद्यालयों में हैं. कई स्व-घोषित सोशल एक्टिविस्ट और एनजीओ भी पाकिस्तान से
पैसा लेते होंगे, ऐसा संभव है.
इस आरोप का प्रमाण क्या है? प्रमाण उन लोगों का आचरण है.
ऐसा क्यों होता है कि जब भी सरकार पाकिस्तान के विरुद्ध
कोई कार्यवाही करने का सोचती है, तो पाकिस्तान के समर्थन में यहाँ-वहाँ आवाज़ें
सुनाई देने लगती हैं? यह लोग सरकार के निश्चय को कमज़ोर करने का प्रयास क्यों करते
हैं?
पिछले कुछ वर्षों से सेना का मनोबल गिराने का भी भरपूर प्रयास
हो रहा है. एक ओर सेना अघोषित युद्ध का लगातार सामना कर रही है, देश को सुरक्षित
रखने के लिए हर दिन अपने अधिकारियों और जवानों की आहुति दे रही है, दूसरी ओर सेना
को हतोत्साहित करने की चेष्टा होती रहती है.
कोई नेता सेना अध्यक्ष को गाली देता है, तो कोई सेना के
वीरता पर प्रश्न-चिन्ह लगाता. सेना के अधिकारियों के विरुद्ध ऍफ़आईआर दर्ज किये
जाते हैं, पीआईएल दाखिल की जाती हैं.
लोगों में ऐसी धारणा बनाने का प्रयास होता है कि
आतंकवादी घटनाओं के लिए आतंकवादी कम और इस देश के लोग या सेना या सरकार अधिक
ज़िम्मेवार हैं.
संभव है कि कुछ लोग सरकार या सेना की आलोचना सिर्फ अपनी विचार
धारा के कारण ही करते हों. पर इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि कुछ लोग और कुछ
संस्थायें अवश्य ही पाकिस्तान की पे-रोल
पर हैं.
पिछली सरकारों के लिए ऐसे लोगों की कलई खोलना शायद हितकर
न था. इसलिये उन सरकारों ने इस दिशा की ओर कोई कदम नहीं उठाया.
पर मोदी सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया, यह बात समझ के
परे है. बाहर के शत्रु से अधिक खतरनाक घर के भीतर बैठे शत्रु होते हैं. इन लोगों
से निपटे बिना सरकार पाकिस्तान के मनसूबों को विफल नहीं कर सकती. हो सकता है कि इन
में से कुछ लोग (और संस्थायें) बहुत शक्तिशाली हों, पर इसके बावजूद इनके विरुद्ध
कारवाही करने का जोखिम तो सरकार को उठाना ही पड़ेगा.
मेरी समझ में इन लोगों की पोल खोलने में और इनसे निपटने
में सरकार विफल रही है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें