एक ग़ज़ल : वो रोशनी के नाम से --
वो रोशनी के नाम से डरता है आजतक
जुल्मत की हर गली से जो गुज़रा है आजतक
जुल्मत की हर गली से जो गुज़रा है आजतक
बढ़ने को बढ़ गया है किसी ताड़ की तरह
बौना हर एक शख़्स को समझा है आजतक
बौना हर एक शख़्स को समझा है आजतक
सब लोग हैं कि भीड़ का हिस्सा बने हुए
"इन्सानियत’ ही भीड़ में तनहा है आजतक
"इन्सानियत’ ही भीड़ में तनहा है आजतक
हर पाँच साल पे वो नया ख़्वाब बेचता
जनता को बेवक़ूफ़ समझता है आजतक
जनता को बेवक़ूफ़ समझता है आजतक
वो रोशनी में तीरगी ही ढूँढता रहा
सच को हमेशा झूठ ही माना है आजतक
सच को हमेशा झूठ ही माना है आजतक
वैसे तमाम और मसाइल थे सामने
’कुर्सी’ की बात सिर्फ़ वो करता है आजतक
’कुर्सी’ की बात सिर्फ़ वो करता है आजतक
हर रोज़ हर मुक़ाम पे खंज़र के वार थे
’आनन’ ख़ुदा की मेह्र से ज़िन्दा है आजतक
’आनन’ ख़ुदा की मेह्र से ज़िन्दा है आजतक
-आनन्द.पाठक-
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएं