मोदी जी की जीत-एक विश्लेषण
मोदी जी की चुनावों में
प्रचंड जीत का कई बुद्धिमान लोग अब प्रचंड विश्लेषण कर रहे हैं. पर आश्चर्य है कि कोई
भी विश्लेषक उन मुद्दों की ओर संकेत नहीं कर रहा जो मेरी समझ उतने महत्वपूर्ण रहे जितने महत्वपूर्ण अन्य मुद्दे थे
जिन पर बुद्धिजीवी ज़ोर दे रहे हैं.
मोदी जी को लगभग सब राज्यों में पचास प्रतिशत से अधिक मत मिले जो एक
असामान्य घटना है. विचार करने वाली बात है
कि इतने अधिक लोग मोदी जी के पक्ष में क्यों खड़े हो गये?
मुख्य कारण है कि (कांग्रेस के प्रचार के बावजूद) अधिकतर लोग महसूस
करते हैं कि मोदी जी पूरी तरह ईमानदार व्यक्ति हैं. भारत अधिकांश राजनेता भ्रष्ट हैं,
यह बात जनता से छिपी नहीं है. ऐसे वातावरण में मोदी जी की ईमानदारी ने लोगों को
बहुत प्रभावित किया है. लोगों को इस बात का भी अहसास है कि जितने भी नेता मोदी जी के विरूद्ध लामबंद हुए
हैं उन में से कई भ्रष्टाचार में पूरी तरह लिप्त हैं.
दूसरी बात, लोगों को महसूस हो रहा था कि यह पहली सरकार थी जो सब
लोगों के साथ बराबरी का व्यवहार कर रही थी. अब तक सिर्फ बराबरी का एक प्रपंच था
जिसके सहारे तुष्टिकरण की राजनीति की जाती थी. इस तुष्टिकरण की राजनीति से गरीब
अल्पसंख्यकों का कितना लाभ हुआ वह एक अलग बहस का विषय है.
तीसरा कारण था कई योजनाओं को कार्यान्वित करने में मोदी जी की सफलता.
जो लोग सिस्टम के बाहर हैं उन्हें इस बात का ज़रा भी अहसास नहीं है कि पिछले
चालीस-पचास वर्षों में सिस्टम इतना बिगड़ चुका है कि इस सिस्टम से कोई काम लेना एक चुनौती
होता है. ऐसी पृष्ठभूमि में अगर मोदी जी कुछ योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू कर पाए
तो वह एक प्रशंसा की बात है. लोगों ने चुनाव में उन्हें वोट देकर अपना आभार व्यक्त
किया है.
अगला कारण रहा विरोधियों का मोदी जी को लगातार अपशब्द कहना. जितने भद्दे
अपशब्द मोदी जी को कहे गये, उतने शायद शिशुपाल ने श्री कृष्ण को न कहे होंगे. पर
जो राजनेता यह अपशब्द कह रहे थे उन्हें इस बात का बिलकुल ज्ञान नहीं था कि वह
सिर्फ मोदी जी को अपमानित न कर रहे थे. वह उन सब लोगों को भी अपमानित कर रहे थे
जिन्होंने मोदी जी को चुना था, जो उनसे प्रभावित थे, जो उन्हें फिर से चुनना चाहते
थे. इन मतदाताओं को बार-बार अपमानित कर के कांग्रेस और दूसरे दलों के नेताओं ने
सुनिश्चित कर दिया कि वोटिंग के दिन वह सामान्य जन वोट देने अवश्य जाएँ और मोदी जी
को वोट देकर अपने अपमान का बदला लें. इतना ही नहीं इन में से कई मतदाताओं ने यह भी
सुनिश्चित किया होगा कि उनके घर-परिवार के सब लोग मत-दान करें.
लोक सभा और राज्य सभा में जिस प्रकार का व्यवहार विपक्षी दलों ने
किया उससे भी कई मत-दाता पूरी तरह निराश थे. आप अपनी सुख-सुविधाओं को तो त्यागना
नहीं चाहते, पर सरकार को चलने नहीं देंगे, ऐसी राजनीति कम से कम नई पीढ़ी को तो पसंद
नहीं है.
अन्य कारणों के विषय में
टीवी पर खूब चर्चा हो रही है. इस लिए उन पर कुछ लिखना आवश्यक नहीं है.
मेरा तो यह मानना है कि जब तक विपक्ष में मोदी जी जैसा ईमानदार नेता
नहीं उभरता, जो सिर्फ और सिर्फ देश के विषय में सोचे और जिसके पास भविष्य की अपनी कोई
परिकल्पना हो, तब तक मोदी जी का सामना
करना किसी विपक्षी नेता के लिए संभव नहीं है.
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