घट में बसता जीव है,नदिया जीवन धार।
परम ज्योति का अंग हैं, कण-कण में विस्तार।
कान्हा आकर देख ले, मुरली तेरी मौन।
सूना सूना जग लगे, पीड़ा सुनता कौन।
भाव-भाव में भेद है,जैसी जिसकी चाह।
जैसी जिसकी भावना,वैसी उसकी राह।।
सूई करती काम जो,कर न सके तलवार।
भेद भले ही हो बड़ा,करती हैं उपकार।
कविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।
समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।
सुरभित मंद पवन बही,पुष्पों से ले गंध।
मन मयूर सा नाचता,कवि रचता है छंद।
मंथन मन का कीजिए,रखिए मन में आस।
प्रश्नों के उत्तर मिलें,हृदय शांति का वास।
भूख जलाती पेट को,जलता सब संसार।
रोटी के आगे सदा, नियमों की हो हार।
अँधियारे को चीरता,आता है आदित्य।
दुर्दिन से डरना नहीं,कर्म करो तुम नित्य।
नियमित यदि अभ्यास हो,मिले सफलता आर्य।
साहस धीरज से सदा,सधते सारे कार्य।।
अहंकार की आग में,सद्गुण होते नष्ट।
मानव दानव सम बने,देता सबको कष्ट।
हाला सबकी प्रिय बनी,भूले सब भगवान।
इस हाला के सामने,ज्ञानी खोए ज्ञान।
संकट में जब देश हो,सेवा की हो चाह।
तब-तब आए सामने,देखो भामाशाह।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
परम ज्योति का अंग हैं, कण-कण में विस्तार।
कान्हा आकर देख ले, मुरली तेरी मौन।
सूना सूना जग लगे, पीड़ा सुनता कौन।
भाव-भाव में भेद है,जैसी जिसकी चाह।
जैसी जिसकी भावना,वैसी उसकी राह।।
सूई करती काम जो,कर न सके तलवार।
भेद भले ही हो बड़ा,करती हैं उपकार।
कविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।
समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।
सुरभित मंद पवन बही,पुष्पों से ले गंध।
मन मयूर सा नाचता,कवि रचता है छंद।
मंथन मन का कीजिए,रखिए मन में आस।
प्रश्नों के उत्तर मिलें,हृदय शांति का वास।
भूख जलाती पेट को,जलता सब संसार।
रोटी के आगे सदा, नियमों की हो हार।
अँधियारे को चीरता,आता है आदित्य।
दुर्दिन से डरना नहीं,कर्म करो तुम नित्य।
नियमित यदि अभ्यास हो,मिले सफलता आर्य।
साहस धीरज से सदा,सधते सारे कार्य।।
अहंकार की आग में,सद्गुण होते नष्ट।
मानव दानव सम बने,देता सबको कष्ट।
हाला सबकी प्रिय बनी,भूले सब भगवान।
इस हाला के सामने,ज्ञानी खोए ज्ञान।
संकट में जब देश हो,सेवा की हो चाह।
तब-तब आए सामने,देखो भामाशाह।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
बहुत सुन्दर और सार्थक दोहेय़
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🌹
जवाब देंहटाएंसुरभित मंद पवन बही,पुष्पों से ले गंध।
जवाब देंहटाएंमन मयूर सा नाचता,कवि रचता है छंद।
मंथन मन का कीजिए,रखिए मन में आस।
प्रश्नों के उत्तर मिलें,हृदय शांति का वास।
भूख जलाती पेट को,जलता सब संसार।
रोटी के आगे सदा, नियमों की हो हार।... अभिलाषा जी, बहुत ही खूब तुकबंदी..और सारगर्भित .. आज कल नई कविता के समय में तुकबंदियां खो सी गई थींं ... बहुत ही अच्छा लिखा
अति सुंदर दोहावली ... 💐💐
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही शिक्षाप्रद लाजवाब दोहे...
वाह !लाजवाब दोहे आदरणीय दीदी.
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