एक ग़ज़ल : आइने आजकल ख़ौफ़ ---
आइने आजकल ख़ौफ़ खाने लगे
पत्थरों से डरे , सर झुकाने लगे
पत्थरों से डरे , सर झुकाने लगे
रुख हवा की जिधर ,पीठ कर ली उधर
राग दरबारियों सा है गाने लगे
राग दरबारियों सा है गाने लगे
हादिसा हो गया ,इक धुआँ सा उठा
झूठ को सच बता कर दिखाने लगे
झूठ को सच बता कर दिखाने लगे
हम खड़े हैं इधर,वो खड़े सामने
अब मुखौटे नज़र साफ़ आने लगे
अब मुखौटे नज़र साफ़ आने लगे
वो तो अन्धे नहीं थे मगर जाने क्यूँ
रोशनी को अँधेरा बताने लगे
रोशनी को अँधेरा बताने लगे
जब भी मौसम चुनावों का आया इधर
दल बदल लोग करने कराने लगे
दल बदल लोग करने कराने लगे
अब तो ’आनन’ न उनकी करो बात तुम
जो क़लम बेच कर मुस्कराने लगे
जो क़लम बेच कर मुस्कराने लगे
-आनन्द.पाठक-
उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएं
हटाएंधन्यवाद आप का --सादर
उत्तम. . . . !!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप का --सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आप का
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे
जवाब देंहटाएंBest Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak
बहुत सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएं