चन्द माहिया
1
क्यों फ़िक़्र-ए-क़यामत हो
हुस्न रहे ज़िन्दा
और इश्क़ सलामत हो
2
ऐसे तो नहीं थे तुम
ढूँढ रहा हूँ मैं
जाने न कहाँ हो ग़ुम ?
3
जो तुम से मिला होता
लुट कर भी मुझको
तुम से न गिला होता
4
उनको न पता शायद
याद में उनके हूँ
ख़ुद से ही जुदा शायद
5
आलिम है ,ज्ञानी है
पूछ रहा सब से
क्या इश्क़ के मानी है ?
-आनन्द.पाठक -
1
क्यों फ़िक़्र-ए-क़यामत हो
हुस्न रहे ज़िन्दा
और इश्क़ सलामत हो
2
ऐसे तो नहीं थे तुम
ढूँढ रहा हूँ मैं
जाने न कहाँ हो ग़ुम ?
3
जो तुम से मिला होता
लुट कर भी मुझको
तुम से न गिला होता
4
उनको न पता शायद
याद में उनके हूँ
ख़ुद से ही जुदा शायद
5
आलिम है ,ज्ञानी है
पूछ रहा सब से
क्या इश्क़ के मानी है ?
-आनन्द.पाठक -
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंकॄपा आप की
हटाएंसादर
सुन्दर माहिए।
जवाब देंहटाएं्धन्यवाद आप का
जवाब देंहटाएंसादर
Thanks
जवाब देंहटाएं