सहजो वाणी
हमारे देश में मीरा बाई से लगभग सभी लोग परिचित हैं. उनके कुछ भजनों को तो शिक्षा संस्थानों ने पाठ्य क्रम में भी स्थान दिया है. परन्तु राजपुताना की और संत थीं जिनके विषय बहुत कम लोग जानते हैं. अधिकाँश ने उनका नाम भी नहीं सुना होगा. वह हैं सहजो बाई. वह संत चरण दास जी की शिष्या थीं. उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे लगभग कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, परन्तु सहजो बाई का एक-एक वचन अनमोल मोतियों के समान है.
उनके कुछ वचन (जो मैंने कुछ वर्ष पहले आचार्य रजनीश की पुस्तक में पढ़े थे) यहाँ
सांझा कर रहा हूँ.
सहजो सुपने एक पल, बीते बरस पच्चास
आँख खुले सब झूठ है, ऐसे ही घटबास.
(एक पल के सपने में हम कितना समय बिता देते हैं, पर आँख खुलते ही
अहसास होता है कि सब काल्पनिक था. संसार भी एक सपना जो हम खुली आँख से देख रहे
हैं)
जगत तरैया भोर की, सहजो ठहरत नाहिं
जैसे मोती ओस की, पानी अंजुली माहीं.
(संसार में सब कुछ क्षणिक है, जैसे भोर का तारा जो अभी दिखता और अभी
लुप्त हो जाता या अंजुली में पानी या फूल पर चमकती ओस की बूंद,)
धुआं को सो गढ़ बन्यो, मन में राज संजोये
झाई माई सहजिया कबहू सांच न होये
(धूआँ के बादल उठते है तो उसमें कई प्रकार की आकृतियाँ हम देख लेते
हैं जो वास्तव में हमारे मन ने बनाई होती है. संसार भी इसी तरह मन का खेल है)
निरगुन सरगुन एक प्रभु, देख्यो समझ विचार
सद्गुरु ने आँखे दयीं, निसचै कियो निहार.
(प्रभु सर्व गुण भी हैं और सर्व गुणों से परे भी हैं, सद्गुरु ने मार्ग
दर्शन किया तो ही समझ विचार कर निश्चयपूर्वक यह सत्य जाना)
सहजो हरी बहुरंग है, वही प्रगट वही गूप
जल पाल में भेद नहीं, ज्यों सूरज अरु धूप
(ईश्वर के अनेक रूप हैं, इन भेदों में उलझने के बजाय इस सत्य को समझो)
चरण दास गुरु की दया, गयो सकल संदेह
छूटे वाद-विवाद सब, भयी सहज गति तेह.
(सद्गुरु की अनुकंपा से संदेह मिटेंगे. जब तक संदेह हैं तब तक
वाद-विवाद है और जीवन में असहजता है)
सहजो बाई इस बात की ओर संकेत कर रही हैं कि हम उन्हीं आँखों से सत्य
या ईश्वर को जानने का प्रयास करते हैं जिन आँखों से हम संसार को देखते और परखते
हैं. इसलिए वाद-विवाद हैं और भेद हैं.
जब सद्गुरु ने मार्गदर्शन किया तो समझ आया कि सब भेद और विवाद हमारे
ही बनाये हैं. जिस सत्य को उन्होंने गुरु की कृपा से निश्चय पूर्वक समझा वह कोई अंध
विश्वास नहीं था.
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