एक ग़ज़ल
आप के आने से पहले आ गई ख़ुश्बू इधर,
ख़ैरमक़्दम के लिए मैने झुका ली है नज़र ।
यह मेरा सोज़-ए-दुरूँ, यह शौक़-ए-गुलबोसी मेरा,
अहल-ए-दुनिया को नहीं होगी कभी इसकी ख़बर ।
नाम भी ,एहसास भी, ख़ुश्बू-सा है वह पास भी,
दिल उसी की याद में है मुब्तिला शाम-ओ-सहर ।
तुम उठा दोगे मुझे जो आस्तान-ए-इश्क़ से ,
फिर तुम्हारा चाहने वाला कहो जाए किधर ?
बेनियाज़ी , बेरुख़ी तो ठीक है लेकिन कभी ,
देख लो हालात-ए-दुनिया आसमाँ से तुम उतर कर ।
यह मुहब्बत का असर या इश्क़ का जादू कहें,
आदमी में ’आदमीयत’ अब लगी आने नज़र ।-
शेख़ जी ! क्या पूछते हो आप ’आनन’ का पता ?
बुतकदे में वह कहीं होगा पड़ा थामे जिगर।-
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
सोज़-ए-दुरुँ = हृदय की आन्तरिक वेदना
शौक़-ए-गुलबोसी = फूलों को चूमने की तमन्ना
अहल-ए-दुनिया को = दुनिया वालों को
वाह बहुत खूब
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