ग़ज़ल --होली में
करें जो गोपियों की चूड़ियाँ झंकार होली में ,
बिरज में खूब देतीं है मज़ा लठमार होली में ।
अबीरों के उड़ें बादल कहीं है फ़ाग की मस्ती
कहीं गोरी रचाती सोलहो शृंगार होली में ।
इधर कान्हा की टोली है उधर ’राधा’ अकेली है
चलें दोनो तरफ़ से रंग की बौछार होली में ।
कहीं है थाप चंगों पर, कहीं पायल की छमछम है,
कही पर कर रहा कोई सतत मनुहार होली में ।
किसी के रंग में रँग जा, न आता रोज़ यह मौसम,
किसी का हो गया है जो, वही हुशियार होली में ।
बिरज की हो, अवध की हो, कि होली हो’ बनारस’ की
खुले दिल से करें स्वागत , करें सत्कार होली में ।
गुलालों में घुली हैं स्नेह की ख़ुशबू मुहब्बत की ,
भुला कर सब गिले शिकवे गले मिल यार होली में ।
न खाली हाथ लौटा है यहाँ से आजतक कोई ,
चले आना कि ’आनन’ का खुला है द्वार होली में ।
-आनन्द.पाठक-
8800927181
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंइनायत आप की
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंबिरज की हो, अवध की हो, कि होली हो’ बनारस’ की
जवाब देंहटाएंखुले दिल से करें स्वागत , करें सत्कार होली में ।
न खाली हाथ लौटा है यहाँ से आजतक कोई ,
चले आना कि ’आनन’ का खुला है द्वार होली में।
---- बहुत खूब!
शुभ होली!
स्वागत है आप का
हटाएंरंग-बिरंगी प्यारी रचना. होली है !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंधन्यवाद आप का
जवाब देंहटाएंआभार आप का
जवाब देंहटाएंहोली पर सुंदर सतरंगी अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
आभार आप का
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद
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