एक ग़ज़ल
गुमराह हो गया तू बातों में किसकी आ कर ,
दिल
राहबर है तेरा, बस दिल की तू सुना कर ।
किसको
पुकारता है पत्थर की बस्तियों में ,
खिड़की
नहीं खुलेगी तू लाख आसरा कर ।
मिलना
ज़रा सँभल कर, बदली हुई हवा है ,
हँस
कर मिलेगा तुमसे ख़ंज़र नया छिपा कर ।
जब
सामने खड़ा था भूखा ग़रीब कोई ,
फिर
ढूँढता है किसको दैर-ओ-हरम में जाकर ।
मौसम
चुनाव का है ,वादे
तमाम वादे ,
लूटेंगे
’वोट’ तेरा ,सपने
दिखा दिखा कर ।
मेरा
जमीर मुझको देता नहीं इजाज़त ,
’सम्मान’
मैं कराऊँ ,महफ़िल
सजा सजा कर ।
’आनन’
तेरी ये ग़ैरत अब तक नहीं मरी है,
रखना
इसे तू ज़िन्दा हर हाल में बचा कर ।
-आनन्द.पाठक-
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