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बुधवार, 20 अप्रैल 2022

एक ग़ज़ल : यूँ उनकी शान के आगे

एक ग़ज़ल 


यूँ उनकी शान के आगे है मेरी शान क्या  !

इनायत हो न जब उनकी मेरी पहचान क्या !


हवा नफ़रत जो फ़ैलाए तो है किस काम की,

न फैलाए अगर ख़ुशबू हवा का मान क्या !


गिरह तू चाहता है खोलना ,खुलती नहीं

तेरा अख़्लाक़ क्या है ताक़त-ए-ईमान क्या  !


शराइत हैं हज़ारों जब, हज़ारों बंदिशें

तुम्हारे दर तलक जाना कहीं आसान क्या !


दिखाता राह इन्सां को मुहब्बत का दिया

जले ना आग सीने में तो फिर इन्सान क्या !


कभी तुमने नहीं देखा ख़ुद अपने आप को

वगरना ज़िंदगी होती कभी अनजान क्या !


जो कहना चाहते हो तुम ज़रा खुल कर कहो

तुम्हारी चाहतें क्या ,ख़्वाब क्या, अरमान क्या !


अक़ीदत हो तुम्हारे दिल में हो जो हौसला

तो  ’आनन’ सामने हो आँधियाँ तूफ़ान क्या !


-आनन्द.पाठक-


अख़्लाक़ = सदाचार ,शील, शिष्टाचार

शराइत = शर्तें

अक़ीदत = श्रद्धा विश्वास


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-04-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4407 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

    जवाब देंहटाएं
  2. जो कहना चाहते हो तुम ज़रा खुलकर कहो
    तुम्हारी चाहते क्या ख़्वाब क्या अरमान क्या

    अहा क्या कहने

    जवाब देंहटाएं