एक ग़ज़ल
दुश्मनी कब तक निभाओगे कहाँ तक ?
आग में खुद को जलाओगे कहाँ
तक ?
है किसे फ़ुरसत तुम्हारा ग़म सुने जो ,
रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक ?
नफ़रतों की आग से तो खेलते हो ,
पैरहन1 अपना बचाओगे कहाँ
तक ?
रोशनी से रोशनी का सिलसिला है ,
इन चरागों को बुझाओगे कहाँ तक ?
ताब-ए-उलफ़त2 से पिघल जाते हैं पत्थर ,
अहल-ए-दुनिया3 को बताओगे कहाँ तक ?
सब गए हैं, छोड़ कर, जाओगे
तुम भी ,
महल अपना ले के जाओगे कहाँ तक ?
जाग कर भी सो रहे हैं लोग ’आनन’ ,
तुम उन्हें कब तक जगाओगे कहाँ तक ?
-आनन्द.पाठक-
8800927181
1- लिबास 2-प्रेम की तपिश
से , 3- दुनिया के लोगों को,
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार आप का
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 04 अप्रैल 2022 ) को 'यही कमीं रही मुझ में' (चर्चा अंक 4390 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
कॄपा आप की
हटाएंसादर
उव्वाहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंसादर..
धन्यवाद जी आप का
हटाएंसादर
वाह! अव्वल और उम्दा!!!
जवाब देंहटाएं्बहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया
हटाएंआप का
वाह!बहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंरोशनी से रोशनी का सिलसिला है ,
इन चरागों को बुझाओगे कहाँ तक... गज़ब 👌
जी बहुत बहुत धन्यवाद आप का
हटाएंसादर
अच्छी गज़ल है । सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएं- बीजेन्द्र जैमिनी
्बहुत बहुत आभार आप का--सादर
हटाएंउम्दा ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब।
धन्यवाद जी
हटाएंसादर
्धन्यवाद सादर
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