गंग छंद
गंग की धारा।
सर्व अघ हारा।।
शिव शीश सोहे।
जगत जन मोहे।।
पावनी गंगा।
करे तन चंगा।।
नदी वरदानी।
सरित-पटरानी।।
तट पे बसे हैं।
तीरथ सजे हैं।।
हरिद्वार काशी।
सब पाप नाशी।।
ऋषिकेश शोभा।
हृदय की लोभा।।
भक्त गण आते।
भाग्य सरहाते।।
तीर पर आ के।
मस्तक झुका के।।
पितरगण सेते।
जलांजलि देते।।
मंदाकिनी माँ।
अघनाशिनी माँ।।
भव की तु तारा।
'नमन' शत बारा।।
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गंग छंद विधान -
गंग छंद 9 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु गुरु (SS) से होना आवश्यक है। यह आँक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 9 मात्राओं का विन्यास पंचकल + दो गुरु वर्ण (SS) हैं। पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :-
122
212
221
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव दो गुरु (SS) से होना चाहिए।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
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