मनोविज्ञानी कहते
हें कि यह इंसान
कभी भी पूर्ण
नही हो सकता हैं
जन्म से लेकर
शरीर त्यागने तक
अकेले जीवन
गुजारना मुश्किल हैं
अन्य सभी जीव
अपनी जीवन यात्रा
ताउम्र अकेले
सहर्ष वे बीता जाते हैं
यह इंसान
जन्म से मां बाप भाई व
बहनों में
सहारा खोजता रह जाता हैं
यही चाहत
उसकी विवाह उपरान्त भी
जीवनसंगनी व
बच्चों से बनी रहती हैं
वृद्धावस्था
में गर किसी बाह्य को वह
हमराज बनावे
मित्र पर शंकित होता है
कहानी इक सबल
जीव इंसान की जोकि
ताउम्र
वह सहारा खोजता रह जाता हैं
कभी खौफ से
खुदा की चौखट पर खडा
कभी शक्ति व
सत्ता के गलियारों में हो
कभी
पारिवारिक बुजुर्गों के सामने आता
कभी आश्रितों
के मध्य जाखडा होता हैं
कहावे खुद को
सक्षम किन्तु रहेगा वो
आत्मविश्वास
से सदैव अधूरा रहता हैं
पथिक अनजाना
sahi baat ki aapne ....
जवाब देंहटाएंइंसान कब पूरा हुआ है?पूरा होगा तो देवता न बन जाये?ईश्वर पूरा बनाने की गलती करेगा भी नहीं.सुन्दर प्रस्तुति
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