नही कह सकता कोई प्रकृति
इंसा को जमीं आखिर ले कहाँ जा रही हैं
प्रकृति का रूप आकार चल अचल स्वरूप सब
विशाल समझ से
परे हैं
लेकिन प्रकृति की पुकार
इशारों को संदेश को इंसान न कभी सुनता हैं
न जाने किस प्रकृति का
स्वंय न समझे
प्रकृति की प्रकृति क्या होती हैं
जिसे खुद की प्रकृति पर
यकीन नही वह क्या प्रकृति को समझ पावेगा
जो प्रकृति की लय पर जीता वही प्रकृति के लिये विनाशक हो
जावेगा
नही समझ आता इंसानों को
दोनों प्रकृतियों की परिपूरक प्रकृति क्या हैं?
पथिक अनजाना
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