“मसूद अज़हर जी.......”
कांग्रेस का जिहादियों के साथ अनोखा संबंध है. दिग्विजय
सिंह हमेशा ओसामा का नाम बड़े सम्मान के साथ लेते हैं. एक अन्य नेता के लिए अफज़ल
गुरु “जी” थे. शिंदे साहिब के लिए हाफिज़ “श्री” थे. अब राहुल गांधी के लिए भी मसूद
अज़हर “जी” हो गये हैं.
अब पार्टी अध्यक्ष ने कहा तो कार्यकर्ताओं का कर्तव्य है
कि उनकी बात को उचित सिद्ध करें, तो ब्यानबाज़ी
शुरू हो गयी है.
सेना अध्यक्ष इनके लिए गली के गुंडे समान है. सेना के
अधिकारियों के वक्तव्यों पर इनका विश्वास नहीं हैं. इन्हें सेना से हर बात का सबूत
चाहिये. इनमें कुछ अनुभवी लोग अवश्य जानते होंगे कि किसी भी देश में सेना अपनी कार्यवाही
के ऐसे सबूत सार्वजनिक नहीं करती और न ही वहां का कोई नागरिक अपनी सेना पर
अविश्वास करता है. पर यह भारत है यहाँ सब कुछ संभव है.
वैसे भारत के मुख्य न्यायाधीश पर भी कांग्रेस ने अभियोग
चलाने का प्रयास किया था. कांग्रेस के नेताओं को उन पर विश्वास नहीं था. उन्हें
सीएजी पर विश्वास नहीं है, इवीएम पर
विश्वास नहीं है.
जिस तरह की भाषा यह प्रधान मंत्री के लिए प्रयोग करते
आयें हैं, वह अकसर अभद्र होती है. पर उसे नज़रंदाज़ किया जा सकता है, क्योंकि बीजेपी
और खासकर मोदीजी के साथ कांग्रेस, और
खासकर गांधी परिवार के सदस्य, एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं. पिछड़ी जाति और गरीब
परिवार का एक व्यक्ति, उनकी अनुकंपा के बिना, प्रधान मंत्री के पद पर पहुँच जाए, यह बात उनके लिए स्वीकार थोड़ा मुश्किल है. तो उनका
कुंठित होना स्वाभाविक है.
पर इस कुंठा के चलते वह जिहादियों से प्रेम करने लगें यह
समझ के परे है. चालीस वर्षों से पाकिस्तान एक परोक्ष युद्ध कर रहा है. आतंकी हमलों
में हज़ारों लोगों की मृत्यु हुई या घायल हुए. पर इस देश की किसी सरकार ने (अटल
सरकार ने भी) जिहादियों को उनके घर में घुस कर मारने का साहस नहीं किया. अब इस
सरकार ने थोड़ा साहस दिखाया है, तो कांग्रेस की कुंठा और बढ़ गयी है. उन्हें लगता है
कि मोदी जी के इस निर्णय से उनकी प्रतिष्ठा थोड़ी घट गयी है.
तो कांग्रेस के पास उपाय क्या है? उनके पास एक ही उपाय है;
वह उपाय है इन सर्जिकल स्ट्राइक्स को अविश्वास और संदेह के घेरे में ले आएँ. इस
कार्य को सफलता पूर्वक करने में राहुल गाँधी जी-जान से प्रयास कर रहे है. आज लगभग
सारा विपक्ष इस मुद्दे पर एक साथ है. सब का कहना है कि सर्जिकल स्ट्राइक्स राजनीति
से प्रेरित थीं और उनकी सफलता संदेहास्पद है. और संयोग से यही बात पाकिस्तान भी कह
रहा है.
राहुल गांधी यह आरोप लगा रहे थे कि “मसूद अज़हर जी” को पिछली
बीजेपी सरकार ने छोड़ा था.
निश्चय ही यह निर्णय उस सरकार की बड़ी भूल थी. अटल जी को
उस भयंकर आतंकवादी को कभी नहीं छोड़ना चाहिए था और जहाज़ के लगभग डेढ़ सौ यात्रियों
का बलिदान दे देना चाहिये था.
पर क्या यह बलिदान देने के लिए लोग तैयार थे?
राहुल गांधी उस समय बहुत छोटे थे, शायद उन्होंने उन
दिनों टीवी रिपोर्ट्स नहीं देखी होंगी.
लेकिन अगर आप को उस समय के टीवी रिपोर्ट्स याद हैं तो आप एक पल में इस
प्रश्न का उत्तर जान जायेंगे. मसूद अज़हर की रिहाई के लिए जितनी सरकार दोषी थी,
उतना ही विपक्ष, मीडिया और आम लोग दोषी थे.
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