क्या सरकार को हवाई स्ट्राइक के सबूत सार्वजनिक करने
चाहियें?
पिछले कुछ दिनों से हवाई स्ट्राइक को लेकर आश्चर्यजनक
ब्यानबाज़ी हो रही है. ऐसी-ऐसी बातें कही जा रही हैं जिन्हें सुन कर मुझ जैसा आम
आदमी तो चकरा गया है.
ऐसा लगता है कि सरकार पर विपक्ष और मीडिया के कुछ लोग भरपूर
दबाव डाल रहें ताकि अपनी और सेना की साख बचाने के लिए सरकार स्ट्राइक के कुछ प्रमाण
सार्वजनिक कर दे.
क्या इस दबाव के पीछे सिर्फ राजनीति है या किसी का कोई
अप्रत्यक्ष एजेंडा भी है?
शायद आम लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि सेना
का हर मिशन बहुत ही गुप्त होता है. हर मिशन की जानकारी गिने-चुने अधिकारियों और
सैनिकों को होती है. मिशन कब होगा, कैसे किया जाएगा, किस प्रकार के हथियार
इस्तेमाल होंगे अर्थात मिशन की हर छोटी या बड़ी बात पूरी तरह गुप्त रखी जाती है और
सिर्फ उन्हीं लोगों के पास होती जिनका मिशन से सीधा संबंध होता है .
मिशन पूरा होने के बाद ‘डी-ब्रीफिंग’ होती. मिशन सफल हुआ
हो या असफल, मिशन से जुड़े लोगों से जानकारी ली जाती. भविष्य में बनने वाली योजनाओं
में उन जानकारियों से लाभ उठाया जाता है. ट्रेनिंग में भी उस जानकारियों का उपयोग किया
जाता है.
ऐसी गुप्त जानकारियों को प्राप्त करने के लिए शत्रु
हमेशा बेताब रहता है. क्योंकि वह आपकी क्षमता और आपकी कमजोरियों को समझना चाहता
है. हर देश की मिलिट्री इंटेलिजेंस अपने शत्रु सेना के बारे में ऐसी जानकारी
प्राप्त करने के लिए कई हथकंडे उपयोग में लाती है और इस काम को बड़ी चालाकी से पूरा
करती है.
हवाई स्ट्राइक का हर प्रमाण हमारी वायु सेना की क्षमता
और कमजोरियों का कुछ न कुछ संकेत शत्रु को अवश्य देगा. चाहे वह कितना ही मामूली
क्यों न हो, पर ऐसा हर संकेत शत्रु की जानकारी में कुछ न कुछ वृद्धि तो करेगा.
हो सकता है कि हमारे देश का कोई भी नागरिक शत्रु के लिए
काम न कर रहे हो, पर फिर भी इस समय किसी दबाव में आकर सरकार को ऐसा कोई प्रमाण
सार्वजनिक नहीं करना चाहिये जो हमारी सेनाओं को किसी भी रूप में कमज़ोर करे या
शत्रु की जानकारी में किसी प्रकार की वृद्धि करे.
प्रमाण कब सार्वजनिक करने हैं यह निर्णय एक सोची-समझी
रणनीति के अनुसार ही होना चाहिये.
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