कुछ और नहीं हमी की तरह है
ये जिंदगी जिंदगी की तरह है
ये जिंदगी जिंदगी की तरह है
यो न झुका सर हर चैखटों पर
ये आदत बंदगी की तरह है
ये आदत बंदगी की तरह है
क्यूं जां लेके घूमता है हथेली पे
ये जूर्रत आशिकी की तरह है
ये जूर्रत आशिकी की तरह है
रात ख्वाबों में उससे मुलाकात हुई
उसकी हर बात मौसिकी की तरह है
उसकी हर बात मौसिकी की तरह है
ळो अब ख्याल गजल बनने ळगे
हर खुशी गम, गम खुशी की तरह है
हर खुशी गम, गम खुशी की तरह है
यूॅ तो चमकते सितारे खूब हैं पर
चाॅद बिन फ़लक में कुछ कमी की तरह है
चाॅद बिन फ़लक में कुछ कमी की तरह है
फिर मयस्सर हुआ मुदृतों बाद मुझको
ये माॅं का आँचल बिल्कुल जमीं की तरह है
ये माॅं का आँचल बिल्कुल जमीं की तरह है
मुझे शहर छोड़ अब घर जाना ही होगा
माॅ से मिलने की चाहत बेखुदी की तरह है
माॅ से मिलने की चाहत बेखुदी की तरह है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-03-2019) को "जूता चलता देखकर, जनसेवक लाचार" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंhttps://www.amarbalecha.com/2019/06/whatsapp-tips-and-tricks.html
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