चीन का हाथ अज़हर मसूद
के साथ
जैसी की अपेक्षा थी चीन फिर एक बार अज़हर मसूद की ढाल
बना. सिक्यूरिटी कौंसिल में वह अकेला ऐसा सदस्य था जिसने उस आतंकवादी का साथ दिया.
देश में कई लोग चीन के इस व्यवहार से क्रोधित हैं, कुछ
प्रसन्न भी हैं. पर हर कोई इस बात की अनदेखी कर रहा हैं कि चीन के लिए सबसे
महत्वपूर्ण उसके अपने हित है. अपने हितों को ख्याल रखना हर स्वाभिमानी देश के
नागरिकों और नेताओं का सर्वोच्च कर्तव्य होता है. चीन के लोग बहुत ही स्वाभिमानी हैं. वह अपने को
बहुत ही श्रेष्ठ समझते हैं. देश हित उनके लिए सर्वोपरि होता है. इस बार भी उन्होंने
वही निर्णय लिया जो उनकी समझ में उनके हित में था.
अगर हम लोग अपने परिवार, अपनी पार्टी, अपनी जाति, अपने
प्रदेश, अपने धर्म को देश के हितों से ऊपर (बहुत ऊपर) रखते हैं, तो यह हमारी
समस्या है. अगर हम समझते हैं कि कोई और हमारी मुसीबतों से हमें छुटकारा दिला देगा
तो यह हमारी ना-समझी है.
ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि जब हम लोग ही अपने
हितों की अनदेखी कर रहे हैं तो दूसरे को क्या पड़ी है कि वह अपने हितों को भूल कर
हमारी समस्याएं सुलझाने लगे.
जब आतंकवाद को लेकर हम स्वयं ही एक आवाज़ में नहीं बोल
रहे, तो चीन हमारे साथ क्यों युगलबंदी करे?
जब हम सब सरकार के साथ नहीं खड़े हैं, तो चीन हमारी सरकार
के साथ क्यों खड़ा हो?
अगर हम में से कई विद्वान् टुकड़े-टुकड़े गैंग को लेकर असमंजस
में हैं और कई समझदार राजनेता और बुद्धिजीवी खुल कर उनके समर्थन में खड़े हैं , तो
चीन उनकी पीठ पर अपना हाथ क्यों न रखे?
अगर
चालीस वर्षों में हम आतंकवाद को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बना पाए, तो चीन हमारी
सहायता क्यों करे?
अगर
हम बार-बार आतंकवादियों के सामने घुटने टेक देते हैं, तो चीन हमारा सम्मान क्यों
करे?
हमें यह बात समझ लेनी होगी कि जो देश हमारे साथ खड़े हैं,
वह अपने हित साधने के लिए खड़े हैं. और जो साथ नहीं हैं, उनका हित उसी में हैं. ऐसा
उन सब का अपना विश्लेष्ण हैं.
अगर हम एक शक्तिशाली देश बनना चाहते हैं तो हमें
आत्म-निर्भर और स्वाभिमानी बनना होगा. अन्यथा आतंकी हमले होते रहेंगे और हम ट्विटर
और सोशल मीडिया पर अपना रोना-धोना करते रहेंगे.
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अनुलेख – हम में से जो लोग आज क्रोधित हैं उनमें से
कितने लोग चीन और चीनी वस्तुयों का बहिष्कार करने को तैयार हैं?
अक्षरशः सत्य !
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