:1:
माना कि तमाशा है
कार-ए-जहाँ यूँ सब
फिर भी इक आशा है
:2:
दरपन तो दरपन है
झूट नहीं बोले
क्या बोल रहा मन है ?
:3:
छाई जो घटाएं हों
दिल क्यूँ ना बहके
सन्दल सी हवाएं हों
:4:
जितना देखा है फ़लक
उतना ही होगा
बातों में सच की झलक
:5:
कैसा ये नशा ,किसका ?
कब देखा उस को ?
एहसास है बस जिसका
-आनन्द पाठक
09413395592
माना कि तमाशा है
कार-ए-जहाँ यूँ सब
फिर भी इक आशा है
:2:
दरपन तो दरपन है
झूट नहीं बोले
क्या बोल रहा मन है ?
:3:
छाई जो घटाएं हों
दिल क्यूँ ना बहके
सन्दल सी हवाएं हों
:4:
जितना देखा है फ़लक
उतना ही होगा
बातों में सच की झलक
:5:
कैसा ये नशा ,किसका ?
कब देखा उस को ?
एहसास है बस जिसका
-आनन्द पाठक
09413395592
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