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रविवार, 24 अप्रैल 2016

वह

          वह

खामोशी के सागर में,

              मुस्कान कंकड़ डाल |

खुशियों की लहरें,

             बना जाता है वह |

भुलाना चाहूँ, तो भी,

        भूल से याद आ जाता है वह |

दुनियाँ के दरिया मे,

        टुटी नैया पर सवार हूँ मै,

टुटी नैया मे,

  अहं की छोटी पतवार हूँ  मै.

     फिर भी  अहं को भूला कर मेरे,

सन्मार्ग मुझे दिखा जाता है वह |

भूलाना चाहूँ तो भी,

भूल से याद आ जाता है वह |

भूल तो जाउँ उसे पर,

कैसे भुलाउँ उपकार उसका |

समीर  उसकी, नीर  उसका |

मुफ्त मे, प्राण चेतना,

सबको दे जाता है वह.  |

             भूलाना चाहूँ तो भी,

भूलकर याद आ जाता है वह |
   
                जी. एस. परमार

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