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बुधवार, 1 जून 2016

कवि





वे सितारे लग रहे थे
जैसे ईर्दगिर्द
कर रहे हैं चहलकदमी
और मैं
विचरण उनके असीम दुनियॉ में
पंक्षियोें की तरह
किंतु बिना पाखों के 

चॉद उतर आया है ऑखों में
या ऑखें उतर आई है चॉद में
एक कवि ही तो है
जो उतार लेता है हर चीज खुद में
और उतर जाता है हर चीज में ।

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