लता मंगेशकर, सचिन
तेंदुलकर और कॉमेडी
मीडिया में चल रही
किसी चर्चा में सुना कि किसी तन्मय भट्ट ने सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर को
लेकर एक बहुत फूहड़ कॉमेडी वीडियो बनाया. कई लोग इस से आहत हुए हैं, मीडिया में भी
इस तथाकथित कॉमेडी को लेकर खूब चर्चा हुई है. भट्ट के समर्थन में भी कुछ लोग आ खड़े
हुए हैं.
तन्मय भट्ट को एक सफलता तो मिल ही गई है, वह चर्चा का विषय बन गया और मुझ
जैसे कई लोगों ने पहली बार उसका नाम सुना. मैंने वह वीडियो देखना आवश्यक नहीं समझा
परन्तु सैंकड़ों, हज़ारों लोगों ने उस वीडियो को देखा होगा और शायद सराहा भी होगा.
पर मन में एक प्रश्न उठा, सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर पर ही क्यों ऐसी
कॉमेडी करने का विचार उस व्यक्ति के मन में आया. उत्तर मिला जब गुलज़ार की फिल्म ‘अंगूर’
आज एक बार फिर देखी.
अगर किसी व्यक्ति
में प्रतिभा कूट-कूट कर भरी हो तो उसे अपनी कला को प्रदर्शित करने के लिए
बैसाखियों की आवश्यकता नहीं पड़ती, समस्या तब खड़ी होती है जब भट्ट जैसा कोई व्यक्ति
अपने को प्रतिभाशाली मान बैठता है और फिर अपेक्षा करता है समाज में हर कोई उसकी
प्रतिभा का डंका माने, उसका गुणगान करे.
‘अंगूर’ में न ही
गुलज़ार को और न ही संजीव कुमार एवम अन्य कलाकारों को किसी प्रकार की फूहड़ कॉमेडी
करनी पड़ी थी, न ही इन कलाकारों को किसी बैसाखी का सहारा लेना पड़ा था. वह सब इतने
प्रतिभाशाली कलाकार हैं/थे कि फिल्म में सब कुछ पूरी तरह स्वाभाविक लगता है और
देखने वाला हर बार हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाता है.
दूसरी समस्या है
भट्ट जैसे लोगों की रातों-रात प्रसिद्ध होने की ललक. प्रसिद्धी इतनी सस्ती नहीं
होती. विरले लोगों को ही यह सरलता से मिलती है. अधिकतर तो प्रतिभाशाली लोगों को भी
कई बार वर्षों तपस्या करनी पड़ती है तब जाकर उन्हें सफलता मिलती है. कहीं पढ़ा था कि
इरविंग स्टोन की किताब ‘लस्ट फॉर लाइफ’ को तीन वर्षों तक सत्रह प्रकाशकों ने रद्द कर
दिया था तब जाकर वह पुस्कत प्रकाशित हुई और बहुत सफल रही. ऐसे कई उदहारण हर
क्षेत्र, हर काल में मिल जायेंगे.
हर सफलता के पीछे एक
अथक प्रयास होता है. परन्तु हर मनुष्य के लिए ऐसा प्रयास करना सम्भव नहीं होता.
ऐसे लोग प्रतिभाहीन, आलसी लोग सदा ही सुगम उपाये अपनाते रहे हैं, आज के समय में
सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर पर ‘कॉमेडी’ करने से सरल क्या हो सकता है. इसी सोच
से भट्ट ने यह वीडियो बनाया है और हम सब ने अपनी प्रतिक्रिया से ऐसी सोच को सही
ठहराया है.
पर मुझे तरस तो उन
लोगों पर आता है जो तन्मय भट्ट जैसे लोगों को चर्चा का विषय बना देते हैं. वह इस
के योग्य नहीं है. या फिर यह भी हो सकता है कि हम सब ही प्रतिभाहीन हैं और ऐसे ही
महत्वहीन और असंगत मुद्दों पर बहस करने की क्षमता ही हमें विधाता ने दी है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें