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शनिवार, 15 सितंबर 2018

चन्द माहिया : क़िस्त 54

चन्द माहिया  :क़िस्त 54

:1:
ये कैसी माया है
तन तो है जग में
मन तुझ में समाया है

:2:
जब  तेरे दर आया
हर चेहरा मुझ को
मासूम नज़र आया

:3:
ये कैसा रिश्ता है
देखा कब उसको
दिल रमता रहता है

:4:
बेचैन बहुत है दिल
कब तक मैं तड़पूं
बस अब तो आकर मिल

:5:
यादें कुछ सावन की
तुम न आए जो
बस एक व्यथा मन की

-आनन्द.पाठक-

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (17-09-2018) को "मौन-निमन्त्रण तो दे दो" (चर्चा अंक-3097) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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