चन्द माहिया :क़िस्त 53
:1:
सब क़िस्मत की बातें
कुछ को ग़म ही ग़म
कुछ को बस सौग़ातें
:2:
कब किसने है माना
आज नहीं तो कल
सब छोड़ के है जाना
:3:
कब तक भागूँ मन से
देख रहा कोई
छुप छुप के चिलमन से
:4:
कब दुख ही दुख रहता
वक़्त किसी का भी
यकसा तो नहीं रखता
:5:
जब जाना है ,बन्दे !
काट ज़रा अब तो
सब माया के फन्दे
-आनन्द.पाठक-
:1:
सब क़िस्मत की बातें
कुछ को ग़म ही ग़म
कुछ को बस सौग़ातें
:2:
कब किसने है माना
आज नहीं तो कल
सब छोड़ के है जाना
:3:
कब तक भागूँ मन से
देख रहा कोई
छुप छुप के चिलमन से
:4:
कब दुख ही दुख रहता
वक़्त किसी का भी
यकसा तो नहीं रखता
:5:
जब जाना है ,बन्दे !
काट ज़रा अब तो
सब माया के फन्दे
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-09-2018) को "शिक्षक दिवस, ज्ञान की अमावस" (चर्चा अंक-3085) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
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