चन्द माहिया : क़िस्त 55
:1:
शिकवा न शिकायत है
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है
:2:
कैसा ये सितम तेरा
सीख रही हो क्या ?
निकला ही न दम मेरा
:3:
छोड़ो भी गिला शिकवा
अहल-ए-दुनिया से
जो होना था सो हुआ
:4:
इतना ही बस माना
राह-ए-मुहब्बत से
घर तक तेरे जाना
:5:
ये दर्द हमारा है
तनहाई में बस
इसका ही सहारा है
-आनन्द पाठक--
:1:
शिकवा न शिकायत है
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है
:2:
कैसा ये सितम तेरा
सीख रही हो क्या ?
निकला ही न दम मेरा
:3:
छोड़ो भी गिला शिकवा
अहल-ए-दुनिया से
जो होना था सो हुआ
:4:
इतना ही बस माना
राह-ए-मुहब्बत से
घर तक तेरे जाना
:5:
ये दर्द हमारा है
तनहाई में बस
इसका ही सहारा है
-आनन्द पाठक--
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-10-2018) को "किसे अच्छी नहीं लगती" (चर्चा अंक-3132) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
Ji Dhanyvaad aap kaa
हटाएंबहुत जी सुंदर माहिए ...
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