वातानुकूलित आप ने आश्रम बना लिए
सत्ता के इर्द-गिर्द ही धूनी रमा लिए
’दिल्ली’ में बस गए हैं ’तपोवन’ को छोड़कर
’साधू’ भी आजकल के मुखौटे चढ़ा लिए
सब वेद ज्ञान श्लोक ॠचा मन्त्र बेच कर
जो धर्म बच गया था दलाली में खा लिए
आए वो ’कठघरे’ में न चेहरे पे थी शिकन
साहिब हुज़ूर जेल ही में घर बसा लिए
ये आप का हुनर था कि जादूगरी कोई
ईमान बेच बेच के पैसा कमा लिए
गूँगों की बस्तियों में वो अन्धों की भीड़ में
खोटे तमाम जो भी थे सिक्के चला लिए
’आनन’ तुम्हारा मौन कि माना बहुत मुखर
लेकिन जहाँ था बोलना क्यों चुप लगा लिए
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-10-2018) को "कृपा करो अब मात" (चर्चा अंक-3125) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी