एक ग़ज़ल : जड़ों तक साजिशें गहरी---
जड़ों तक साज़िशें गहरी ,सतह पे हादसे थे
जहाँ बारूद की ढेरी , वहीं पर घर बने थे
हवा में मुठ्ठियाँ ताने जो सीना ठोकते थे
ज़रूरत जब पड़ी उनकी ,झुका गरदन गए थे
कि उनकी आदतें थी देखना बस आसमाँ ही
ज़मीं पाँवों के नीचे खोखली फिर भी खड़े थे
अँधेरा ले कर आए हैं ,बदल कर रोशनी को
वो अपने आप की परछाईयों से यूँ डरे थे
बहुत उम्मीद थी जिनसे ,बहुत आवाज़ भी दी
कि जिनको चाहिए था जागना .सोए पड़े थे
हमारी चाह थी ’आनन’ कि दर्शन आप के हों
मगर जब भी मिले हम आप से ,चेहरे चढ़े थे
-आनन्द.पाठक--
जड़ों तक साज़िशें गहरी ,सतह पे हादसे थे
जहाँ बारूद की ढेरी , वहीं पर घर बने थे
हवा में मुठ्ठियाँ ताने जो सीना ठोकते थे
ज़रूरत जब पड़ी उनकी ,झुका गरदन गए थे
कि उनकी आदतें थी देखना बस आसमाँ ही
ज़मीं पाँवों के नीचे खोखली फिर भी खड़े थे
अँधेरा ले कर आए हैं ,बदल कर रोशनी को
वो अपने आप की परछाईयों से यूँ डरे थे
बहुत उम्मीद थी जिनसे ,बहुत आवाज़ भी दी
कि जिनको चाहिए था जागना .सोए पड़े थे
हमारी चाह थी ’आनन’ कि दर्शन आप के हों
मगर जब भी मिले हम आप से ,चेहरे चढ़े थे
-आनन्द.पाठक--
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-10-2018) को "शरीफों की नजाकत है" (चर्चा अंक-3117) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dhanyavaad aap kaa
हटाएंवाह वाह जनाब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल.
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया बहुत अच्छा लगा.
नाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)
जी बहुत बहुत धन्यवाद आप का
जवाब देंहटाएं"बड़ी देर कर दी मेहरबां आते आते"
इसी तरह जब कभी फ़ुरसत मिले----
"जब कभी फ़ुरसत मिले ’आनन’ से मिलना
मिल जो लोगे बारहा मिलते रहोगे --
सादर
बहुत ही सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंJi Dhanyvaad aap ka --
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