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बुधवार, 27 अक्टूबर 2021

 

प्रतिशोध-एक कहानी

होटल में प्रवेश करते ही दिनेश को अमर दिखाई दिया. उनकी नज़रें मिलीं पर दोनों ने ऐसा व्यवहार किया कि जैसे वह एक दूसरे को जानते नहीं थे. परन्तु अधिक देर तक वह एक दूसरे की नकार नहीं पाये.

‘बहुत समय हो गया.’

‘हाँ, दस साल, पाँच महीने और बाईस दिन.’

‘तुम ने तो दिन भी गिन रखे हैं?’

‘क्यों? तुम ने नहीं गिन रखे?’

‘क्या कभी जय से भेंट हुई? या बि......’

‘कभी नहीं. तुम्हारी?’

‘कभी नहीं.’

लेकिन दोनों को ही पता न था कि जय और बिन्नी भी उसी होटल में रुके हुए थे. उन दोनों ने सुबह दस बजे उसी होटल में चेक-इन किया था. वैसे जय और बिन्नी की भी अभी तक आपस में भेंट न हुई थी.

दस वर्षों से चारों एक-दूसरे से न कभी मिले थे. किसी प्रकार को कोई संपर्क उनके बीच नहीं था. हर एक के लिए जैसे अन्य तीनों का कोई अस्तित्व ही नहीं था.

होटल के ‘बार’ में चारों इकट्ठे हुए. उनका लगभग एक साथ ‘बार’ में आना सुनियोजित नहीं था. ‘बार’ में थोड़ा समय बिताने के लिये चारों अलग-अलग ही आये थे और हर एक दूसरों को देख कर सकपका गया था.

अनचाहे ही वह एक साथ बैठ गये. अतीत की परछाइयों से घिरे हुए वह एक साथ बैठ तो गये थे, पर आपस में बातचीत करने के लिए कोई इच्छुक न था.

कितनी देर तक इस तरह एक-दूसरे को नकार कर वह एक साथ बैठ सकते थे? बातचीत शुरू हुई,  पर बेमतलब की, एक दूसरे से आँखें चुराते हुए. अतीत के विषय में किसी ने कोई बात न की. चारों में से किसी ने भी यह जानने का प्रयास न किया कि कौन कहाँ था, क्या कर रहा था और किस कारण उस होटल में रुका हुआ था.

अचानक अमर उठ खड़ा हुआ. उसने कहा कि वह बहुत थक गया था, रूम में जाकर वह विश्राम करना चाहता था. वह पलटा.

तभी पास से गुज़रती एक लड़की लड़खड़ा गई. इससे पहले कि वह गिरती उसने हाथ बढ़ा कर अमर का हाथ थाम लिया. अगर वह संभल न पाती तो शायद बुरी तरह उनकी मेज़ पर ही आ गिरती. शायद उसने थोड़ी अधिक शराब पी ली थी.    

‘धन्यवाद, आपने मेरी लाज रख ली. पर क्या आप सुंदर लड़कियों को गिरने से अकसर बचाते हैं?’ उसने अमर की आँखों में देखते हुए कहा. अमर हड़बड़ा गया, उस ने आँखें नीची कर लीं.

‘अगर यह कोई बैचलर पार्टी नहीं है तो क्या मैं आपके साथ बैठ जाऊं?’

‘यह तो हमारा सौभाग्य.......’ बिन्नी एकदम बोला पर फिर कुछ सोच कर ठिठक गया.

लड़की ने उनकी झिझक की बिलकुल परवाह नहीं की और बड़े विश्वास के साथ वेटर से उसके लिए कुर्सी लाने का संकेत किया. वह उनके साथ बैठ गई.

चारों ने चोरी-चोरी एक दूसरे को देखा. हर एक  के मन में संदेह की हल्की-हल्की लहरें उठने लगी थीं. हाँ एक बात शुरू करने में हिचकिचा रहा था. लेकिन उनकी रहस्यमय चुप्पी से बेखबर वह लड़की बातें किये जा रही थी. उनके निमंत्रण की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने ड्रिंक मंगवा लिया था.

‘आप लोग क्या पहली बार मिल रहे हो? मुझे तो लगा था कि आप सब पुराने मित्र हो? शायद स्कूल-कॉलेज के सहपाठी? नहीं?’

किसी ने उसकी बात का उत्तर नहीं दिया. चुपचाप चारों अपने-अपने ड्रिंक में व्यस्त हो गये.

धीरे-धीरे तनाव कम होने लगा. उनके होंठो पर मुस्कान थिरकने लगी. उन्होंने देखा की लड़की जितनी सुंदर थी उतनी ही हंसमुख भी थी. लेकिन उसे देख कर दिनेश और अमर को कुछ घबराहट सी भी हो रही थी. न जाने क्यों वह लड़की उन्हें किसी की याद दिला रही थी.

या तो शराब का नशा था या फिर उस लड़की ने उन्हें इतना सम्मोहित कर दिया था कि वह चारों अनायास बीते दिनों की बात करने लगे थे.

‘लेकिन इन दस वर्षों में आप कभी आपस में नहीं मिले?’

‘नहीं, हमारी पिछली मुलाक़ात दस वर्ष पाँच महीने और बाईस दिन पहले हुई थी,’ दिनेश ने बिना सोचे ही कहा. अगले ही पल वह सहम गया.

‘उसी दिन न जिस दिन वह नीली आँखों वाली लड़की की मृत्यु हुई थी?’

उसके शब्दों ने उन्हें चौंका दिया.

‘या फिर तुम सब ने मिल कर उसे मार डाला था?’ लड़की के शब्द छुरी समान उनके सीने में चुभ गये

‘नहीं, वह तो एक दुर्घटना थी. एक दुर्घटना! वह....वह अपनी इच्छा से आई थी..... हम उसकी हत्या क्यों.......?’ दिनेश घबरा कर ज़रा ऊंची आवाज़ में बोला. लेकिन अगले ही पल उसे अहसास हुआ कि उसने अनचाहे ही बहुत कुछ कह डाला था. वह एक भयानक भूल कर बैठा था.

‘वह दुर्घटना नहीं थी और यह बात तुम सब अच्छी तरह जानते हो,’ लड़की की आँखें किसी शेरनी समान चमक रही थीं.

जय ने इधर-उधर देखा. ‘बार’ लगभग खाली था. उसने घड़ी देखी, बारह बजने वाले थे. इतना समय कैसे बीत गया. कहीं घड़ी खराब तो नहीं हो गयी? उसका भय उसकी आँखों से छलकने लगी.

‘तुम कौन हो? उस लड़की को कैसे जानती हो?’ जय ने लगभग धमकाते हुए पूछा.

‘तुम मुझे नहीं जानते? देखो मेरी ओर....ध्यान से देखो. मैं वही लड़की हूँ जिसे तुम ने उस दिन मार डाला था. पर मैं बच गई थी. मैं मरी नहीं थी. मैं बच गई थी, अपना प्रतिशोध लेने के लिए.’

उन्हें समझ न आया कि वह क्या कह रही थी. आश्चर्यचकित से वह उसे घूरने लगे. तभी उन्हें अहसास हुआ कि वह डर से कांपने लगे थे.

‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता! तुम हमें मूर्ख समझती हो!’

‘क्यों ऐसा नहीं हो सकता?’ लड़की की आँखें क्रोध से जलने लगी थीं.

‘क्योंकि हमने उसकी लाश को भट्टी में जला दिया था, और ...और.... और इस बात के लिए मैंने सदा अपने से घृणा की है,’ दिनेश ने बिना रुके कहा और अपने आप में सिमट कर बैठ गया. उसकी सहमी हुई सिसकियाँ पूरे ‘बार’ में गूँज रही थीं.

‘ऐसा भयानक काम तुम कैसे कर पाए?’ लड़की ने थरथराती हुई  हुई आवाज़ में कहा. उसकी आँखें भर आई थीं.

‘तुम कौन हो?’ जय की आवाज़ कांप रही थी, लेकिन उसकी आँखें भय और तिरस्कार से जल रही थीं.

‘मैं उस मृत लड़की की छोटी बहन हूँ. वर्षों से मैं तुम लोगों को ढूँढ़ रही थी. तुम सब मेरे कारण ही यहाँ आये हो. यह कोन्फेरेंस तो बस एक बहाना थी, तुम्हें एक साथ यहाँ इकट्ठा करने के लिए.’

वह चुप हो गयी और कई पलों तक कोई कुछ न बोला. लड़की ने घूरते हुए उनको देखा.

‘यह सब मैं तुम लोगों से सुनना चाहती थी......तुम सब को मारने से पहले.’

‘तुम ऐसा नहीं कर सकती!’ बिन्नी चिल्लाया.

‘क्या नहीं कर सकती?’

‘तुम हमें नहीं.....’

‘क्यों नहीं मार सकती? मैं तुम्हें मार सकती हूँ......सच तो यह मैं तुम्हें मार चुकी हूँ!’

चारों स्तब्ध रह गये.

‘यह शराब जो तुम चारों यहाँ बैठे कर पी रहे हो इसमें ज़हर मिला हुआ है....................’

चारों की आँखें पत्थरा सी गईं.

‘तुम सब मरोगे. अभी एकदम से नहीं, पर जल्दी ही.’

लड़की ने एक कोने में बैठे हुए एक लड़के की ओर देखा. बहुत धीरे से सिर हिला कर लड़के ने उसका अभिवादन किया.

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021

 

सबहीं नचावत राम गोसाईं

भगवतीचरण वर्मा के एक उत्कृष्ट उपन्यास का शीर्षक है, सबहीं नचावत राम गोसाईं. पर मैं उस उपन्यास के विषय मैं कोई चर्चा नहीं करने वाला. मैं तो उन लोगों के विषय में बात करना चाहता हूँ जिन्हें आजकल राम गोसाई नचा रहे हैं.

अचानक पिछले कुछ वर्षो से देश में एक परिवर्तन आ गया है. कुछ लोग जन्युधारी हो गये हैं. कुछ लोग त्रिपुंडधारी हो गये हैं. गंगा स्नान कर रहे हैं.  मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं. जो लोग वर्षों तक ६ दिसम्बर १९९२ की बरसी मानते रहे और वह जो कहते थे कि राम काल्पनिक हैं, वह सब भी आज राम का गुणगान कर रहे हैं.

और दिल्ली के मुख्यमंत्री  का भी हृदय परिवर्तन हो गया लगता है. उन्होंने एक बार एक जन सभा में बताया था कि उनकी नानी ने कहा था, उनका राम किसी मस्जिद को तोड़ कर बने मंदिर में नहीं बस सकता. फिर कभी मुख्यमंत्री जी ने किसी सभा में कहा कि आई आई टी खरगपुर बनाने के बजाए अगर मंदिर बनाया होता तो क्या देश तरक्की करता. ऐसे और भी वक्तव्य हैं उनके जो यू ट्यूब पर देखे जा सकते है.

पर अब वह भी अयोध्या गये. क्या चुनाव आने वाले हैं?

सच में, सबहीं नचावत राम गोसाईं. 

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

कुछ अनुभूतियाँ

 

कुछ अनुभूतियाँ

 

1

रात रात भर जग कर चन्दा

ढूँढ रहा है किसे गगन में ?

थक कर बेबस सो जाता है

दर्द दबा कर अपने मन में |

 

2

बीती रातों की सब बातें

मुझको कब सोने देती हैं ?

क़स्में तेरी सर पर मेरे

मुझको कब रोने देती हैं ?

 

3

कौन सुनेगा दर्द हमारा

वो तो गई, जिसको सुनना था,

आने वाले कल की ख़ातिर

प्रेम के रंग से मन रँगना था।

 

4

सपनों के ताने-बानों से

बुनी चदरिया रही अधूरी

वक़्त उड़ा कर कहाँ ले गया

अब तो बस जीना मजबूरी   

 

-आनन्द.पाठक-

 

मंगलवार, 19 अक्टूबर 2021

 

विधाता का अन्याय

“किस बात को लेकर आप विचारमग्न हैं?” मैंने मुकन्दी लाल जी से पूछा. वह आये तो दे गपशप करने पर बैठते ही किसी चिंता में खो गये.

“सोच रहा था, विधाता भी कुछ लोगों के साथ बहुत अन्याय करते हैं.”

“अब किस के साथ अन्याय कर दिया हमारे विधाता ने?”

“इन विरासत-जीवियों के साथ. विधाता इन ‘देवों के प्रिय’ लोगों को विरासत में सत्ता की कुर्सी तो देते हैं, पर न उन्हें समझदारी प्रदान करते हैं और न ही दूरदर्शिता. विधाता को इन देवानामप्रियाओं से ऐसा क्रूर खेला नहीं खेलना चाहिए. यह अन्याय है.”

“अगर कुछ लोगों में अक्ल की कमी है तो इसमें विधाता का क्या दोष?”

“सच में यह विधाता का सरासर अन्याय है. जब विधाता ने स्वयं विधान में लिख दिया होता है कि किस महापुरुष (या किस महामहिला) के कैलाशवासी होने के पर उसकी सत्ता किस महापुरुष (या महामहिला) को विरासत में मिलेगी, तो ऐसे विरासत-जीवी को किसी योग्य बनाना भी तो विधाता का ही कर्तव्य है.”

“अरे, यह आप क्या कह रहे हैं? मेहनत.......”

“वह सब रहने दीजिये. वह सब किताबी बातें हैं.” मुकन्दी लाल जी ने मुझे बात पूरी न करने दी. “जब भाग्य में कुर्सी लिखी थी तभी बाकी गुण देने का भी प्रबंध कर देना चाहिए था.”

“................” मैं तर्कहीन हो गया.

“पर इसका परिणाम तो हम ग़रीबों को भोगना पड़ता है.”

“वह कैसे?”

“ऐसे-ऐसे नमूनों को झेलना पड़ता है कि समझ नहीं आता कि अपने भाग्य पर रोयें या हँसे.”

(यह सिर्फ एक व्यंग्य है. इसका किसी और रूप में विश्लेष्ण न करें)  

रविवार, 17 अक्टूबर 2021

चन्द माहिए

 

चन्द माहिए

 

  :1:

सब ग़म के भँवर में हैं,
कौन किसे पूछे?
सब अपने सफ़र में हैं।
 

 ;2:

अपना ही भला देखा,

कब देखी मैने,

अपनी लक्षमन रेखा?

 

 :3:

माया की नगरी में,

बाँधोंगे कब तक

इस धूप को गठरी में ?

 

 :4:

होठों पे तराने हैं,

आँखों में बोलो

किसके अफ़साने हैं ?

 

5

जो चाहे, दे देना,

चाहत क्या मेरी
आँखों से समझ लेना।

 

-आनन्द.पाठक-

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021

एक व्यंग्य : रावण का पुतला

 डायरी के पन्नों से-------।


आज नवमी है -कल दशहरा है।कल आप लोग व्यस्त रहेंगे रावण पर पत्थर फेकने में---रावण का पुतला जलाने में । तो यह व्यंग्य आज ही पढ़ लें--पता नहीं कल समय मिले न मिले--[ आगामी व्यंग्य संग्रह - रोज़ तमाशा मेरे आगे---से]

--रावण का पुतला--

---- आज रावण-वध है ।
40 फुट का पुतला जलाया जायेगा। विगत वर्ष, 30 फुट का पुतला जलाया गया था। इस साल रावण का कद बढ़ गया । पिछ्ले साल से इस साल लूट-पाट, अत्याचार, अपहरण, हत्या की घटनायें बढ़ गई सो ’रावण’ का कद भी बढ गया है। रावण बलात्कार नहीं करता था क्योंकि वह ’रावण’ था। इसके लिए और लोग हैं आजकल। रामलीला की तैयारियाँ पूरी हो चुकी है। मैदान में भीड़ इकठ्ठी हो रही है। बाल-बच्चे, महिलायें , वॄद्ध, नौजवान सब धीरे धीरे ’राम लीला’ मैदान में आ रहे हैं। रावण-वध देखना है। मंच सजाया रहा है। इस साल का मंच बड़ा बनाया जा रहा है। पिछले साल छोटा पड़ गया था। इस साल वी0आई0पी0 -लोग ज़्यादा आयेंगे। सरकार में कई पार्टियों का योगदान है। सभी पार्टियों के नेताओं को जगह देना है मंच पर । विगत वर्ष ’अमुक’ पार्टी के नेता जी को मंच पर जगह नहीं मिली थी तो बिफ़र गये थे मंच पर ही। धमकी देकर गए थे। ’हिन्दुत्व ’पर, आप का ही एकमात्र ’कापी -राइट’ नही है । हमारा भी है। इसी लिए तो उनका ’हाथ’’ छोड़ कर इधर आये हैं, वरना उधर क्या बुरे थे? इस बार कोई दूसरा नेता न बिदक जाए, तो मंच को बड़ा रखना ज़रूरी है। सबको जगह देना है। सबको साधना है। सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास बाक़ी बक़वास। पता नहीं यह विश्वास कब तक रहेगा? कब कोई टाँग खींच दे? मंच पर ’सीता-राम-लक्षमण-हनुमान’ के लिए जगह कम पड़ गई। तो क्या हुआ? वो तो सबके दिल में है । उन्हें जगह की क्या ज़रूरत?उन्हें जगह की क्या कमी! हाँ, वी0आई0पी0 लोगो को मंच पर जगह कम न पड़ जाये।
नेता आयेंगे, अधिकारीगण आयेंगे रावण वध देखने। मंच पर वो भी आयेंगे जिन पर ’बलात्कार’ के आरोप हैं।-वो भी आयेंगे जिनपर ’घोटाले’ का आरोप हैं।-वो भी आयेंगे जो ’बाहुबली’ हैं जिन्होने आम जनता का ’बूँद बूँद खून’ चूस कर अपने अपने अपने ’घट’ भरे हैं-।--रावण ने भी भरा था। वो भी आयेंगे जो कई ’लड़कियों’ का अपहरण कर चुके हैं। वो भी आयेंगे जिन पर ’रिश्वत’ का आरोप है। ’भारत तेरे टुकड़े होंगे’ इंशाअल्ला इंशाअल्ला गैंगवाले भी आयेंगे ।कहते है- आरोप से क्या होता है ? सिद्ध भी तो होना चाहिये। आज सब भगवान को माला पहनायेंगे--
मंच के कोने में सिमटे ’राम’ जी सब सुन रहे हैं।-उन्हें ’रावण वध’ करना है।--इधर वाले का नहीं. सामनेवाले का, पुतले का। उधर रावण का पुतला खड़ा किया जा रहा है -भारी है ।ऐसे लोगो के पुतले भारी होते हैं। अपने पापों के कारण भारी होते है। नगर सेठ जी मोटा चन्दा दे कर खड़ा करवा रहे हैं। कमेटी वालों ने येन केन प्रकारेण ’पुतला’ खड़ा कर के सीना चौड़ा किया और चैन की साँस ली। पुतला खड़ा हो गया मैदान में उपस्थित सभी लोगों ने तालिया बजाई। सब की नज़र में आ गया रावण का पुतला --उसका पाप --उसका ’अहंकार’ --उसका ’लोभ--उसका रूप ’। यही तो देखने आए हैं इस मेला में। अपना तो दिखता नहीं। ऐसे पापियों का नाश अवश्य होना चाहिए। वध में अभी विलम्ब है। राम- लक्ष्मण जी अपना तीर धनुष लेकर तैयार हैं --मगर रावण को अभी नहीं मार सकते। भगवान को इन्तज़ार करना पड़ेगा। मुख्य अतिथि महोदय अभी नहीं पहुँचे हैं।
मैदान में लोग आपस में बातचीत कर रहे हैं। समय काटना है।
कान्वेन्ट स्कूल के एक बच्चे ने रावण के पुतले को देख कर पूछ बैठा -"मम्मा हू इस दैट अंकल"?
"बेटा ! ही इज ’रावना’ --लाइक योर डैडू । रामा विल किल ’रावना’-थोड़ी देर में
बच्चे को -’डैडू’ वाली बात तो समझ में नहीं आई ,पर ’रामा’ किल ’रावना’ वाली बात समझ में आ गई
उधर "हरहुआ’ अपने काका को बता रहा था--’कक्का ! अब की बार का पुतला न बड़ा जानदार बनाया है। महँगा होगा? काका ने अपने अर्थशास्त्र ज्ञान से बताया--- हाँ रे! बड़े आदमी का पुतला भी मँहगा होता है। हम गरीबन का थोड़े ही है कि एक मुठ्टी घास ले कर फूंक दिया।
रमनथवा की बीबी कान में अपने मरद से कुछ कह रही थी -"सुनते हो जी! हमें तो आजकल महेन्दरा की नीयत ठीक नहीं लग रही है। बोली-ठोली करता रहता है। हमें तो उसकी नज़र में खोट लग रहा है।-"
’अच्छा! स्साले को ठीक करना पड़ेगा"-रामनाथ ने कहा--"बहुत चर्बी चढ़ गई है स्साले को। बड़ा ’रावण’ बने फिर रहा है। तू उसे छोड़, इधर का रावण देख---"
उधर शर्मा जी ने माथुर साहब से कह रहे हैं -" या या पुतला इज वेरी नाइस --बट इट लैक ए ’टाई’
माथुर साहब ने हामी भरी ---यस सर ! हम लोग ’टाई ’ में कितना ’नाइस" लगता है- न ,-बेटर दैन ’रावना’।
भीड़ बेचैन हो रही है। मुख्य अतिथि महोदय अभी तक पहुँचे नही। मोबाइल से खबर ले रहे हैं। -अरे कितनी भीड़ पहुँची मैदान में? नेता जी के चेला-चापड़ खबर दे रहे हैं। बस सर! आधा घंटा और। पहुँचिए रहें हैं लोग। नेता जी भीड़ से ही जीते हैं।-भीड़ पर ही मरते हैं । रावण को क्या मारना? जल्दी क्या है? रावण तो हर साल मरता है। चुनाव तो इस साल है। राम जी उधर अपना डायलाग’ याद कर रहे हैं –’ हे अधम, अधर्मी रावण ! तू –”
--अब रावण भी बेचैन होने लगा। एक तो मरना और उस पर धूप में खड़ा होने की यह सज़ा’। पता नहीं ये मुख्य अतिथि का बच्चा कब आयेगा। रावण का धैर्य जवाब देने लगा। अन्त में बोल उठा---
"हा! हा! हा! हा! मैं ’रावण’ हूँ।
भीड़ उसकी तरफ़ मुड़ गई ।
यह कौन बोला?--रावण कहाँ है? -यह तो पुतला है। सभी एक दूसरे को आश्चर्य भरी दॄष्टि से देखने लगे।यह पुतला कहां से बोल रहा है?
"हा ! हा! हा! हा!’ -पुतले से पुन: आवाज़ आई-- मैं पुतला नहीं, रावण बोल रहा हूँ! सच का रावण। अरे भीड़ के हिस्सों! मूढ़ों!
तुम लोग क्या समझते हो कि मैं मर गया हूँ? तुम लोग मुझे मार दोगे? वाल्मीकि से लेकर तुलसीदास तक, राधेश्याम से लेकर मोरारी बापू तक, नन्ह्कू हलवाई तक सभी ने मुझे मारा। क्या मैं मरा? हर साल तुम लोगो ने मुझे मारा। क्या मैं मरा? तुम कहते हो कि मैने ’सीता का अपहरण किया? क्या मेरे मरने के बाद सीता का अपहरण बन्द हो गया? क्या तुम्हारे ’बाहुबली’ लोग अब सीता का ’अपहरण’ नही करते? उन्हें ’फ़ाइव स्टार’ होटल में नही रखते? कहते हो कि मैने छल किया --क्या तुम लोग छल नहीं करते? मैं ’अहंकारी’ था। क्या तुम लोग सत्ता के नशे में ’अहंकारी’ नहीं हो?
हा हा ! हा! हा! -----मैं मरता नही। ज़िन्दा हो जाता हूँ हर साल -----तुम्हारे अन्दर ---। लोभ बन कर ,,,,हवस बन कर,,,, छल बन कर ...अहंकार बन कर ---ईर्ष्या बन कर--परमाणु बम्ब बन कर --हाईड्रोजन बम्ब बन कर। हर देश में ..हर काल में ज़िन्दा रहा हूँ मैं। हर युद्ध मे, हर मार काट में हर दंगा में, हर फ़ित्ना में, हर फ़साद में --कभी सीरिया में ----कभी लेबनान मे—कभी अफ़गानिस्तान में -। तुम विभीषण’ को पालते हो न, क्यों कि वह तुम्हे ’सूट’ करता है।--तुमने कभी अपने अन्दर झांक कर नही देखा ।-तुम देख भी नही सकते। -तुम देखना चाहते भी नही । तुम्हे मात्र मुझ पर पत्थर फ़ेकना आता है --क्योंकि पत्थर फ़ेंकना तुम्हे आसान लगता है।--तुम अपने आप पर ’पत्थर नहीं फ़ेंक सकते-।- मुझे जलाना तुम्हे आसान लगता है। -तुम अपने अन्दर का लोभ नहीं जला सकते। -मुझे मारना तुम्हे आसान लगता है।--तुम अपने आप का ’अहंकार नही मार सकते। मेरा अहंकार स्वरूप दिखता है। तुम्हे मेरे नाम से नफ़रत है-।-तुम्हें अपने अन्दर की नफ़रत नहीं दिखती। कोई अपने बेटे का नाम ’रावण’ नही रखना चाहता। सब ’राम’ का ही नाम रखना चाहते हैं।-कई ढोंगी बाबा लोग तो राम के नाम की आड़ में क्या क्या कर्म नहीं करते। आसाराम--राम-रहीम-राम पाल-रा्मवॄक्ष---मैने तो वह सब नहीं किया। और नाम गिनाऊँ क्या? -ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में लोग ’राम’ का नाम रखने में 2-बार सोचेंगे। मैने तो राम के नाम का सहारा नहीं लिया। रावण एक प्रवॄत्ति है--उसे कोई नही मार सकता। अगर मुझे कोई मार सकता है तो तुम्हारे दिल के अन्दर का ’रामत्व’ ही मार सकता है। और तुम सब राम नही हो। अपने अन्दर का ’रामत्व’ जगाऒ ---क्षमा जगाओ----करुणा जगाओ--प्यार जगाओ.. आदर्श जगाओ—मर्यादा जगाओ-- मैं खुद ही मर जाऊँगा
’या ही इज टाकिंग समथिंग नाइस’-- शर्मा जी ने कहा
माथुर साहब ने हुंकारी भरी--’ जब मौत सामने दिखाई देती है तो ज्ञान निकलता है सर ।-दैट इज व्हाट एक्ज़ैक्टली ही इज टाकिंग’ !
कथावाचक ने जैसे ही अपने हारमोनियम पर तान छेड़ी-
--’रावन रथी, विरथ रघुबीरा—
-उसी समय मुख्य अतिथि महोदय अपने मर्सीडीज़ "रथ’ से पधारते भए।
माईक से घोषणा हुई --- भाइयो और बहनो ! आप के दुलारे और हम सब के प्यारे मुख्य अतिथि महोदय अब हमारे बीच पधार चुके है ---जोरदार तालियों से उनका स्वागत कीजिए।
थोड़ी देर में ’रावण वध’ का आयोजन किया जायेगा
सब ने अपने अपने हाथ में पत्थर उठा लिए।

अस्तु -आनन्द.पाठक-

बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

 

               लखिमपुर में घटी घटनाओं की अनकही कहानी

लखिमपुर में जो हिंसा की घटना कुछ दिन पहले घटी उसको लेकर आप ने हर टीवी चैनल पर बहुत कुछ सुना होगा. पर शायद ही किसी मीडिया विश्लेषक ने आपको उस कारण के विषय में कुछ बताया होगा जो लखिमपुर और उसके आसपास के इलाकों में बसे हुए किसानों की चिंता की असली वजह है. मुझे इस विषय की जानकारी प्रदीप सिंह जी के यू-ट्यूब चैनल ‘आपका अख़बार’ के विडियो सुनने पर मिली. आज की घटनाओं को समझने के लिए हमें थोड़ा इतिहास में जाना पड़ेगा.

पकिस्तान से आये कई सिखों को लखिमपुर और उसके आसपास के इलाकों में बसाया गया था. यह सत्य है कि इन लोगों ने कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए अपने को इन नयी जगहों पर स्थापित किया था.

इन लोगों के आने से पहले इन इलाकों में जनजाति के लोग रहते थे, मुख्य जनजातियाँ थीं थारु और बुक्सा. एक समय पर इन लोगों के पास कोई 2.5 लाख एकड़ भूमि थी पर अब इनके पास सिर्फ 15,000 एकड़ भूमि ही बची है.

इन मूल निवासियों की ज़मीन का क्या हुआ? प्रदीप सिंह जी के अनुसार साठ और सत्तर के दशक में थारु और बुक्सा लोगों के बड़े पैमाने पर हत्याएं हुईं, खून बहा, हिंसा हुई और इन लोगों की भूमि पर कब्ज़ा किया. कई मूलनिवासियों से जबरदस्ती लिखवा लिया गया. परिणाम स्वरूप, जहाँ कानूनी तौर पर कोई फार्म 12.5 एकड़ से बड़ा न हो सकता था, वहाँ कुछ लोगों के पास 200, 400, 1000, 2000 एकड़ के फार्म है. यह फार्म इन जनजातियों की भूमि पर और वन विभाग की भूमि पर बने हैं.

यू पी सरकार ने 1981 में कानून बनाया कि कोई भी थारु और बुक्सा जनजाति के लोगों की ज़मीन नहीं खरीद सकता और जिसने भी सीलिंग से अधिक भूमि खरीदी है वह उससे वापस ली जायेगी. पर इस आदेश पर उस समय के हालात के कारण आगे कोई कारवाही नहीं हुई. बाद में कल्याण सिंह सरकार ने भी इस कानून को लागू करने का प्रयास किया पर कुछ कर न पाई.

योगी जी ने उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनने के बाद एक निर्णय लिया कि जिन लोगों ने सरकारी या दूसरों की भूमि पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है उस भूमि को मुक्त कराने का अभियान चलाया जाएगा.

इस अभियान के चलते पिछले साढ़े चार सालों में 1,54,000 एकड़ भूमि अवैध कब्ज़े से मुक्त कर ली गयी है.

अब इस अभियान की आंच लखिमपुर में बसे हुए किसानों तक पहुँच रही है. चूँकि इन किसानों में कई लोग अकाली दल से और कुछ कांग्रेस के साथ जुड़े हैं इसलिए आजतक इन लोगों के विरुद्ध कोई कारवाही नहीं हो सकी.

लखिमपुर में बसे हुए किसान जानते हैं कि वह इस बात को लेकर आन्दोलन नहीं कर सकते. न ही वह इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं. कानूनन उत्तर प्रदेश में कोई भी व्यक्ति 12.5 एकड़ से अधिक भूमि का स्वामी नहीं हो सकता.

अब चूँकि अन्य रास्ते बंद हैं और योगी जी कोई ढिलाई बरतने को तैयार नहीं लगते, इसलिए किसान आन्दोलन की आढ़ में यहाँ के किसान यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जो अभियान उत्तर प्रदेश सरकार ने चलाया उन्हें इससे बाहर रखा जाए.

जैसी की अपेक्षा थी, इस आन्दोलन को उत्तर प्रदेश के बजाय पंजाब के राजनेताओं का पूरा समर्थन मिल रहा है.

(इस मुद्दे पर श्री प्रदीप सिंह का विडिओ यू-ट्यूब पर अवश्य सुनें)