कौन भर रहा है आपका बिजली का बिल?
“इस माह का बिजली का बिल आज आ गया,”
मुकंदी लाल जी चहकते हुए बोले.
“कितना है?”
“बिल तो 833.58 रूपये का है पर मुझे तो एक पैसा भी नहीं देना.”
“क्यों?”
“क्यों क्या अर्थ? 828.72 रुपये की सब्सिडी दी है हमारी कृपानिधान
सरकार ने. बाकी रकम दस से कम है तो बस इसलिए जीरो बिल है. पर आप तो ऐसे कह रहे हैं
कि आपको सब्सिडी नहीं मिलती?”
“भई, मैं भी तो यहीं रहता हूँ. मुझे भी
मिलती है. पर आपने कभी सोचा है कि आपका बिजली का बिल कौन भर रहा है?”
“इससे मुझे क्या लेना-देना? यह काम
सरकार का है. वह सब्सिडी दे रही है तो वह भर रही होगी.”
“हाँ, भर तो रही है पर जानते हैं कि इस
सब्सिडी का पैसा जुटाने के लिए सरकार जो टैक्स लगाती है वो टैक्स गरीब से गरीब
आदमी को भी देना पड़ता है. यह समझ लीजिये कि रास्ते में भीख मांगता भिखारी भी जब अपनी
भीख के पैसे से कुछ खरीदता है तो वह भी टैक्स अदा करता है. उसी टैक्स से आपको
सब्सिडी मिलती है.”
“अर्थात उसकी भीख का कुछ अंश मुझे मिल
रहा है?’
“एक मायने में ऐसा ही है.”
“अगर सरकार ने पैसे उधार लिए हों तो?”
“वह रकम चुकाने के लिए भी टैक्स लगाना
पड़ेगा, कभी न कभी.”
मुकन्दी लाल जी मेरी बात सुन कर खामोश
हो गये. मैं समझ रहा था कि वह क्या सोच रहे थे. वह बहुत स्वाभिमानी व्यक्ति हैं पर
आज उनके स्वाभिमान को थोड़ी ठेस लग गयी थी.
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