मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी
“तो आप का कहना है...किसी को सब्सिडी
नहीं मिलनी चाहिए?” मुकन्दी लाल जी ने पूछा.
“प्रश्न यह नहीं है कि सब्सिडी मिलनी
चाहिए या नहीं मिलनी चाहिए. प्रश्न यह है कि किसे मिलनी चाहिए और कब तक.”
“अर्थात?”
“मुफ्त बिजली की ही बात करते हैं. मान
लीजिये एक आदमी है जो एक महीने में पचास हज़ार रूपये कमाता है और उसका पड़ोसी पूरे साल
में पचास हज़ार कमाता है. तो आपके विचार में क्या दोनों को एक समान बिजली पर
सब्सिडी मिलनी चाहिए?”
“नहीं, बिलकुल नहीं.”
“अभी क्या हो रहा है. जिसकी आर्थिक
स्थिति विषम नहीं है उसे भी सब्सिडी दी जा रही है. हर ओर मुफ्तखोरी चल रही है.
नेता भी खुश लोग भी खुश.”
“क्यों?”
“राजनीति के लिए. मुफ्त बिजली, मुफ्त
पानी, मुफ्त साड़ियाँ, मुफ्त..मुफ्त...यह सब वोटरों को लुभाने के तरीकें हैं. नेता
अपनी जेब से पैसे तो खर्च कर नहीं रहे...ऐसा नहीं है कि उनके पुरखे कुबेर का खज़ाना
छोड़ गये थे जो यह लोगों में मुफ्त में बाँट रहे हैं.... आपका ही पैसा जिसे यह बाँट
कर वोटरों को रिझाते हैं. टैक्स देते जाइए और मुफ्त बिजली लेते रहिये.”
“पर लोगों के आत्मसम्मान को चोट नहीं
पहुँचती? खासकर वह जो सम्पन्न हैं?”
“इसका उत्तर तो आप स्वयं दे सकते हैं.
क्यों, दे सकते हैं या नहीं?” मैंने घूर कर उन्हें देखते हुए कहा.
मुकन्दी लाल में मेरी बात सुन कर झेंप
गये.
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