कोरोना काल में हमारा मीडिया
मार्च के अंतिम सप्ताह में हमारे
परिवार में एक शिशु का आगमन हुआ. स्वाभाविक था कि हमें अस्पताल के कुछ चक्कर लगाने
पड़े. अब यही कारण था या कुछ और हमें समझ नहीं आया लेकिन १३ अप्रैल को मेरे बेटे (
शिशु के पिता) को कोरोना हो गया. अगले तीन दिनों के अंदर घर के सभी सदस्य संक्रमित
हो गये.
मुझे और मेरी पत्नी को वैक्सीन का एक
इंजेक्शन लग चुका था इसलिए हम दोनों को अधिक परेशानी न हुई. चार या पाँच दिन बुखार
रहा. फिर हमारी स्थिति में सुधार आने लगा.
लेकिन बेटे और बहु को बहुत कष्ट सहना
पड़ा. अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता तो नहीं आई. परन्तु बहुत मुसीबत झेलनी
पड़ी. हमें सबसे अधिक चिंता शिशु की थी. कारण, मेरे बेटे के एक मित्र के परिवार के
सब लोगों को जब कोरोना हुआ था तो उसका तीन माह का बच्चा भी इससे प्रभावित हुआ था.
इस कठिनाई के समय में सबसे अच्छी बात
यह रही कि हम समाचार पत्रों और मीडिया से दूर रहे. समाचार पत्र तो लॉकडाउन के लगते
ही मेरे बेटे ने लेना बंद कर दिया था. टीवी मेरे बेटे ने ले नहीं रखा. इस कारण
हमें इस बात से पूरी तरह अनभिक्ष थे कि समाचार पत्रों में क्या लिखा जा रहा था और
टीवी पर क्या दिखाया जा रहा था.
मई के अंत में जब हमारी गाड़ी पटरी पर
लौटी तो जम्मू में माँ की तबियत बिगड़ने लगी. जून के शुरू होते ही हम जम्मू चले गये
और वहाँ भी मीडिया से दूरी बनी रही. माँ कैलाशवासी हो गईं और मध्य-जुलाई में वापस
लौटे.
यहाँ आकर पता चला कि कोरोना काल में
मीडिया ने किस प्रकार की रिपोर्टिंग की थी. लौट कर जिससे भी हमारी बात हुई उसने
यही कहा कि कठिनाई के समय में मीडिया से दूरी बना कर हमने बड़ी समझदारी का काम किया
था.
जब देश में लोग एक भयावह स्थिति का
सामना कर रहे थे, तब मीडिया के प्रतिष्ठित
महानुभाव लोगों का मनोबल तोड़ने का पूरा प्रयास कर रहा था. ऐसे-ऐसे दृश्य दिखाए गये
कि भले-चंगे लोग भी सहम गये थे.
चूँकि मैंने स्वयं यह समाचार देखे या
पढ़े नहीं इसलिय किसी निर्णय पर पहुँचना सरल नहीं है. लेकिन यू ट्यूब चैनलों पर कुछ
विश्लेषकों को सुना उससे पता चलता है कि कोरोना काल में भी मीडिया राजनीति करने से
नहीं चूका. लेकिन यह आश्चर्यजनक नहीं है.
इन लोगों की कौन फंडिंग कर रहा है वह जानना भी कठिन है. यह लोग किस के एजेंडा पर
चल रहे हैं उसका अनुमान ही लगाया जा सकता है.
ब्लॉग का संज्ञान लेने के लिए धन्यवाद
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