उलझनों में झूलता नित
सुख बने हैं राख ढेरी
छिन गया अब चैन मनका
आ रही बस याद तेरी।
नीम की वो छाँव ठंडी
धान के वे खेत सुंदर
बोलती चौपाल पे जब
दर्द के उमड़े समंदर
बाँटते घर सुख-दुख जहाँ
याद में नित करें फेरी।
कंगनों ने पनघटों पे
प्रीत की लिख दी कहानी
पायलों के घुंघरुओं ने
तान जब छेड़ी सुहानी
गीत से तब भोर जागी
धूप ने खुशियाँ बिखेरी।
इस चमकती रोशनी में
डूबते इंसान कितने
ओढ़ते सब है मुखौटा
टूटते कितने हैं सपने
सोचता मन गाँव प्यारा
ये डगर रंगीन मेरी।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
बहुत मधुर गीत !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंसुंदर रचना, अंतिम पैरा मन को छू गया.
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