एक ग़ज़ल
वह अँधेरे में इक रोशनी है,
एक उम्मीद है, ज़िन्दगी है ।
एक दरिया है और एक मैं हूँ,
उम्र भर की मेरी तिश्नगी है ।
नाप सकते हैं हम आसमाँ भी,
हौसलों में कहाँ कुछ कमी है।
ज़िक्र मेरा न हो आशिक़ी में,
यह कहानी किसी और की है ।
लौट कर फिर वहीं आ गए हो,
राहबर ! क्या यही रहबरी है ?
सर झुका कर ज़ुबाँ बन्द रखना,
यह शराफ़त नहीं बेबसी है ।
आजकल क्या हुआ तुझ को ’आनन’
अब ज़ुबाँ ना तेरी आतशी है ।
-आनन्द.पाठक-
बेहतरीन गज़ल।
जवाब देंहटाएंसादर
जी आभार आप का
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बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआभार आप का
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आभार आप का
जवाब देंहटाएंसादर
लाजवाब ग़ज़ल
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