एक ग़ज़ल
चुभी है बात उसे कौन सी पता भी नहीं ,
कई दिनों से वो करता है अब ज़फ़ा भी नहीं ।
हर एक साँस अमानत में सौंप दी जिसको ,
वही न हो सका मेरा , कोई गिला भी नहीं ।
किसी की बात में आकर ख़फ़ा हुआ होगा,
वो बेनियाज़ नहीं है तो आशना भी नहीं ।
ज़ुनून-ए-शौक़ ने रोका हज़ार बार उसे ,
ख़फ़ा ख़फ़ा सा रहा और वह रुका भी नहीं ।
ख़याल-ए-यार में इक उम्र काट दी मैने ,
कमाल यह है कि उससे कभी मिला भी नहीं ।
तमाम उम्र उसे मैं पुकारता ही रहा ,
सुना ज़रूर मगर उसने कुछ कहा भी नहीं ।
हर एक शख़्स के आगे न सर झुका ’आनन’
ज़मीर अपना जगा, हर कोई ख़ुदा भी नहीं ।
-आनन्द.पाठक-
मो0 8800927181
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