काँवडिया गाता चले,शिव महिमा के गीत।
आनंदित तन-मन लगे,मन में बसती प्रीत।
काँवडिया चलता चले,लेकर पावन नीर।
काँटे चुभते पाँव में,होता नहीं अधीर।
श्रावण के इस मास में,आओ शिव के द्वार।
औघड़ दानी वे सदा,करें सदा उद्धार।
काँवड़ शिव के नाम की,लेकर चलते लोग।
भक्ति भावना से भरे,करें ध्यान अरु योग।।
काँवड़ काँधे पर सजी,मुख में शिव का नाम।
संगी-साथी मिल चले,पहुँचे शिव के धाम।।
अभिलाषा चौहान
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-07-2022) को चर्चा मंच "तृषित धरणी रो रही" (चर्चा अंक 4499) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंवाह वाह! सुंदर और सामयिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंहर हर महादेव 🌼🌼
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंबहुत ही सुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आभार सखी सादर
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