मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

रुचि छंद "कालिका स्तवन"



माँ कालिका, लपलप जीभ को लपा।
दुर्दान्तिका, रिपु-दल की तु रक्तपा।।
माहेश्वरी, खड़ग धरे हुँकारती।
कापालिका, नर-मुँड माल धारती।।

तू मुक्त की, यह महि चंड मुंड से।
विच्छेद के, असुरन माथ रुंड से।।
गूँजाय दी, फिर नभ अट्टहास से।
थर्रा गये, तब त्रयलोक त्रास से।।

तू हस्त में, रुधिर कपाल राखती।
आह्लादिका,असुर-लहू चाखती।।
माते कृपा, कर अवरुद्ध है गिरा 
पापों भरे, जगत-समुद्र से तिरा।।

हो सिंह पे, अब असवार अम्बिका।
संसार का, सब हर भार चण्डिका।।
मातेश्वरी, वरद कृपा अपार दे।
निस्तारिणी, जगजननी तु तार दे।।
================
रुचि छंद विधान -

"ताभासजा, व ग" यति चार और नौ।
ओजस्विनी, यह 'रुचि' छंद राच लौ।।

"ताभासजा, व ग" = तगण भगण सगण जगण गुरु
(221  211  112   121   2)
13 वर्ण, 4 चरण, (यति 4-9)
[दो-दो चरण समतुकांत]
*************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें