कभी-कभी बहुत कुछ लिखने का मन करता है,लेकिन लिख नहीं पाती। बहुत कुछ कहने का मन करता है, लेकिन कह नहीं पाती। 'मजबूरियां' रोकती हैं ।आखिर क्या है यह- मजबूरी। यह एक ऐसा शब्द है जिसे व्याख्यायित करना बहुत मुश्किल है।मजबूरियों के अनेक रूप हैं। हर व्यक्ति कहीं न कहीं मजबूर अवश्य है। संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो किसी न किसी बात पर मजबूर ना हो। भगवान राम की अपनी अलग मजबूरियां थी, कृष्ण की अपनी अलग। कभी सीता मजबूर थी, तो कभी राधा। कहने का तात्पर्य यह है कि जब देव पुरुष भी इन मजबूरियों से नहीं बच पाए तो हम जैसे साधारण मानव की बिसात ही क्या है? शायद यह मजबूरी ही संसार चक्र का कारण है। सभी एक दूसरे से जुड़े हैं,कभी प्रेम की मजबूरी के कारण तो कभी लोक लाज की मजबूरी के कारण। सभी अपने कार्य के प्रति वफादार हैं, कभी कर्तव्य की मजबूरी का कारण तो कभी आर्थिक हालात की मजबूरी के कारण।जहां मजबूरी खतम वहीं सारे बंधन,मोह- माया भी खतम। शायद गीता में श्रीकृष्ण ने इसी मजबूरी को मोह का नाम दिया हो और इसे त्यागने के लिए अर्जुन को ज्ञान दिया हो।😊🙏🙏🙏
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रविवार, 19 फ़रवरी 2023
मेरी कलम से
मैं डॉ. शिल्पी श्रीवास्तव निवासी मेंहदौरी कॉलोनी प्रयागराज।वर्तमान में मैं एम.पी.वी.एम.गंगागुरुकुलम विद्यालय, प्रयागराज में हिंदी और संस्कृत के अध्यापिका हूँ। मैंने वर्ष 2002 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की एवं सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर गोल्ड मेडल प्राप्त किया । फिर मैंने 2005 में नेट की परीक्षा उत्तीर्ण की एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग से शोध कार्य किया।मेरा शोध विषय है- पदार्थ धर्मसंग्रह: एक परिशीलन। मेरे पिता श्री अशोक कुमार श्रीवास्तव इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं एवं माता श्रीमती शशि श्रीवास्तव गृहस्वामिनी हैं। 2009 में मेरा विवाह श्री सुधीर श्रीवास्तव के साथ हुआ जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं। सन 2010 में मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई मेरे बेटे का नाम हर्ष श्रीवास्तव है।मेरा हिंदी साहित्य लेखन के प्रति विशेष झुकाव है।इसी झुकाव के कारण हाल ही में मैंने हिंदी से पुनः एम.ए. किया। मैं कविताएं लिखती हूँ ,साथ ही मैंने कुछ कहानियाँ भी लिखी हैं । मेरी कविताओं को आप yourquots ऐप पर और कहानियों को STORYMIRROR ऐप पर पढ़ सकते हैं।
धन्यवाद
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बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद
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