विरुद्धों का सामंजस्य है शिवजी का परिवार
भारतीय परिवार के लिए एक अनुकरणीय प्रतीक है शिव
परिवार। इसीलिए इस परिवार के सभी सदस्य देश के हर कोने में पूजे जाते हैं।शिवजी कोबरा (विषपति सर्प
)धारण किए हुए हैं तो इनके पुत्र गणपति (जो सभी गणों के पूज्य माने जाते हैं )मूषक पर विराजमान हैं। अब
यहां देखिये की चूहा, सर्प का स्वाभाविक भोजन है। लेकिन दोनों सुख पूर्वक एक ही परिवार में रह रहें हैं।
शिव का वाहन नंदी है और पार्वती (दुर्गा )का शेर (चीताः 'टाइगर ) लेकिन दोनों में वैर नहीं है।कार्तिकेय दक्षिण
भारत में मान्य हैं तो शेष परिवार उत्तर में।
यह भी देखिये कि भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है और सर्प मोर का स्वाभाविक भोजन है लेकिन यहां शिव
कुनबे में दोनोँ में सामंजस्य है। परिवार भावना है।
हाथी बल और बुद्धि का प्रतीक है स्वभाव से शाकाहारी है किसी पर हमला नहीं करता लेकिन संकट आने पर
टाइगर को भी सूंड में लपेटकर दूर फैंक देगा। रक्षक है यह परिवार का। ऐसा ही होना चाहिए परिवार का
मुखिया।
यहां हमारे लिए सन्देश यह है की परिवार में रहकर परिवार के अन्य सदस्यों के कल्याण के लिए काम करो।
पति पत्नी के लिए काम करे। उसकी ज़रुरत से पहले समझ ले उसे क्या चाहिए और वही चीज़ उसे मुहैया
करवा दे। और पत्नी पति की इच्छा जानकर कर्म करे उसे पूरा करे। दोनों मिलकर बच्चों की इच्छा जानें और
उसकी पूर्ती करें।
परिवार का मुखिया सभी के हितार्थ कर्म करे।
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and produces more output then the total of the individual efforts
(output ).This is the bottom line here .This is the carry home
message .
विशेष :देखिये भगवान शंकर के बारे में क्या कहा गया है। प -वर्गीय
देवता होने पर भी शिवजी अ -पवर्गीय फल प्रदान करते हैं :
पार्वती फनि बालेन्दु ,
भस्म मंदाकिनी युता।
प -वर्ग मण्डिता मूर्ति ,
अ -पवर्ग फलप्रदा।
अर्थात शिवजी का अस्तित्व प -वर्ग से मंडित (भूषित )है लेकिन
मोक्षप्रदायनी है।
पार्वती हमारे जीवन में प्रेम और विशुद्ध बुद्धि का प्रतीक हैं। प्रेम की
जननी गृहस्वामिनी स्त्री ही होती है। घर प्रेम से ही चलता है। अगर हमारी
बुद्धि विशुद्ध हो गई तो फिर समझो पार्वतीजी हमारे जीवन में
प्रतिष्ठित हो गईं।
फणी मतलब सर्प फ़न वाला (कोबरा )
जीवन में हर प्रकार की प्रतिकूलता का स्वीकार शिव हैं। भगवान ने सर्प
को आभूषण बनाया हुआ है। जिसको दुनिया दूषण मानकर तिरस्कृत
करती है शिव उसे भी भूषन में बदल देते हैं।
द्वितीया के चाँद बालेन्दु को भी उन्होंने धारण किया हुआ है आभूषण
बनाया हुआ है। जो जीवन में उत्तरोत्तर विकास का प्रतीक है।
गंगा (मंदाकिनी )जीवन में पवित्रता और भस्म वैराग्य (non attachment
,dispassion )का प्रतीक है। प्रेम का अंतिम स्वरूप भी नान -अटेचमेंट है।
भगवान कार्तिकेय पराक्रम का प्रतीक हैं। आप तारकासुर का वध करके
अभय प्रदान करते हैं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (08-11-2014) को "आम की खेती बबूल से" (चर्चा मंच-1791) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया वर्णन तथ्यों का |विश्लेषण शानदार |
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति !
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