Maya Mari Na Man Mara, Mar Mar Gaye Shareer
Asha Trishna Na Mari, Keh Gaye Das Kabir
माया मरी न मन मरा , मर -मर गए शरीर ,
आशा तृष्णा न मरी ,कह गए दास कबीर।
श्रुति और दृष्टि से हमारा मन बनता है। मन से जब वाक (वाणी )मिल जाती है तो चेतना भी इसमें आ जुड़ती है।श्रुति
और दृष्टि जिसके पास नहीं हो तो उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता।
माया और मन दोनों की साधना करनी होगी। एक को साधे कुछ नहीं होगा। क्योंकि माया मन को आकर्षित करती है
और मन माया से आबद्ध हो जाता है।
माया का
क्षेत्र बाहर की ओर है आभासी जगत की जगत की ओर है और मन का अंदर की ओर । लेकिन मन जब बाहर की
ओर देखता है माया को भीतर ले आता है।
माया से विमोहित हो जाता है।
माया अनादि है। जो है नहीं लेकिन जिसके होने की प्रतीति होती है वह माया है।
To know that which is not there is Maya ,an optical illusion
a mirage in simplistic terms .
हमारा मरना जीना देह के स्तर पर होता है इसीलिए देह मरती रहती है हम आते जाते रहते हैं। लेकिन
वासनाओं की पूर्ती कभी नहीं होती। वासनाओं की पूर्ती के लिए ही हम दोबारा आते हैं। परमात्मा बार बार मौक़ा
देता है इस देहात्मक बुद्धि से ऊपर उठो। मन को अमन
करो।
जब परमात्मा से लगेगा तो मन अमन हो जाएगा। जन्म जन्मानतरों के कर्म बंधन ,संचित- कर्म नष्ट हो
जाएंगे । प्रारब्ध को भुगतकर व्यक्ति मुक्त हो सकता है। इसीलिए कृष्ण गीता में कहते हैं -हे अर्जुन तुम
अपना
मन और बुद्धि सिर्फ मेरे में लगाओ। एक मेरा ही ध्यान करो और अपना कर्तव्य कर्म करो।
Neither illusion nor the mind, only bodies attained death
Hope and delusion did not die, so Kabir said.
Hope and delusion did not die, so Kabir said.
To understand this doha(Sakhi ) correctly, one must understand first the word 'Maya'. This word is
like an
unsolved riddle and hard to translate. For want of a proper word, it is loosely translated as illusion. In
its depths, 'Maya' perhaps means, Nature on the go...ever changing...hence an illusion.
In this doha, Kabir says while the physical body that is born, lives and eventually dies, the world of
Maya goes on as does the Mind (that intelligent governing Self). Hope and the deceptive greed or
delusion does not die either. Even in his death bed, one continues to cling with the perishable - the
body, with one's aspirations, desires - and the cravings, the urges, the yearnings (trishna) dies not. In
fact, the play of the world "leela" goes on because of this.
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