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सोमवार, 24 नवंबर 2014

Some musings from Shrimad Bhagvad Gita

भोक्तारं यज्ञतपसाम् सर्वलोकमहेश्वरम् ,

सुहृदयम् सर्वभूतानां ज्ञात्वा माम् ,शान्तिम् ऋच्छति।

                                                          (५। २९ )

भगवान कहते हैं जो मुझे तत्व से जान लेता है वह परम शांति को प्राप्त होता है। वह फिर स्वयं को भी जान

लेता है वह फिर यह भी जान लेता है कि भगवान -और मुझमे कोई फर्क नहीं है। वह असीम है। रचता है मैं

उसकी रचना हूँ। दिव्यता दोनों में है। खुद को शरीर मान लेने की भूल से मैं सीमित हो गया हूँ। वासनाओं को

भुगताने  के लिए मैं आ जा रहा हूँ एक से दूसरे चोले में। मेरा कारण शरीर ये वासनाएं ही हैं। वासनाएं समाप्त

हो

जाएं तो मैं मुक्त हो जाऊँ।

खुद को जानकर मैं असीम हो सकता हूँ। अमर हो सकता हूँ।

I can drop my body for ever .But I have to live through the Prarbdh (प्रारब्ध ).

I KNOW I AM AN APPEARENCE IN TIME .I LIVE THROUGH TIME .I AM A TENURE .MY

STAY

HERE IS A TENURE .



He is the cosmic enjoyer of every thing  .Only He enjoys all the austerities and Tapah (तप :) I am a

 limited enjoyer of sukh and dukh at my personal level .He is the Lord of the entire world (Lord of all

the universes ).He is a friend to everybody without expecting any returns from anybody .

He is the Ocean .I am an individual wave essentially of the same nature as Bhagvan .I am Jeeva .My

reality is water .Wave is my outer form which under goes a change .But water (THE JEEVA )

remains the same .

When meditation happens my ego now completely vanishes .Since now I know my true nature .I am

not this body (wave ).I am the soul (water ).

I am not the pot space in the pot .I am the cosmic space in which the pot is situated .I and He are one

.I am Shivoham (shiv -aham ),He and I.

भगवान अर्जुन से कहते हैं पहले तुम कर्मयोगी बनो। तुम्हारे लिए कर्म योग ही श्रेष्ठ है। तुम अपना सौ फीसद

कर्म को दो।

Enjoy your duty and give your 100% to it .Become one with it .Then acquire knowledge .Then only

you will know .You are neither the doer nor the enjoyer .

कर्तृत्व और भोक्तृत्व तब तुम्हारा स्वयं ही गिर जाएगा। यही कर्मसंन्यास है।

To know that you are neither the doer nor the enjoyer is renunciation(कर्म संन्यास ).

कर्म संन्यास का मतलब कुछ छोड़ना नहीं है। जानना है कि मैं न तो करता हूँ न भोक्ता। प्रकृति ही सारे कर्म

करती है।

Actions takes place .You are only the witness .The doers are the three GUNAS (SATV -RAJAS -

TAMS ).

RAVAN IS ILLUSTRATIVE OF ACTION(RAJAS ).

His desires are never fulfilled .He has queens from all the three worlds yet He aspires for Sita .

Kumbkaran eats and sleeps .He illustrates tamoguna .And Vibhishan illustrates Satoguna .You are

the

mixture of all three .But one guna predominates and decides your nature . 

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