श्रीनगर - लेह
अपने तीन दिवसीय श्रीनगर, गुलमर्ग और पहलगाम की यात्रा समाप्त कर चौथे दिन निकल पड़ा अपने अगले पड़ाव "लद्दाख" जिसे हिंदुस्तान में इकलौते शीत मरुस्थल (cold desert) के नाम से भी जाना जाता है। लद्दाख अपने प्राकृतिक सौंदर्यता के लिए प्रख्यात है। नंगे पहाड़ों की बेहद खूबसूरत श्रृंखला पुरे लद्दाख क्षेत्र में देखा जा सकता है। कश्मीर घाटी की प्राकृतिक सौंदर्यता से रूबरू होने के बाद, मेरा अनुभव यह रहा कि लद्दाख क्षेत्र की खूबसूरती कश्मीर घाटी से कहीं ज्यादा है। शर्त इतनी है कि मनुष्य को हरियाली के साथ-साथ पत्थरों और नंगे पहाड़ों और मरुभूमि से भी उतना ही प्यार होना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को पहाड़ों पर उगे हुए ऊँचे पेड़-पौधों की हरियाली ही पसंद आते हैं तो मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि लद्दाख उसे किसी भी सूरतेहाल में पसंद नहीं आनेवाला।
लद्दाख बहूलतः भगवन बुद्ध के अनुयायियों के लिए जाना जाता है। परंतु द्रास और कारगिल जैसे क्षेत्र में शिया मुस्लिम धर्म के अनुयायी हैं। अपनी सांस्कृतिक भिन्नता एवं अवस्थति के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य का अंग होते हुए भी लद्दाख को स्वायत्ता प्राप्त है। लद्दाख क्षेत्र की विकास कार्य हेतु लद्दाख स्वायत पर्वत विकास परिषद (Ladakh Autonomous Hill Development Council) का गठन किया गया है जिसका मुख्यालय लद्दाख क्षेत्र के सबसे बड़े शहर "लेह" में स्थित है।
मैंने कई पत्रिका एवं ब्लॉग्स वेबसाइट पर पढ़ें थे कि श्रीनगर से लेह तक की सफर दो या तीन दिनों में तय करना उत्तम रहता है। जिन्होंने भी यह सलाह दी है मैं उन्हें गलत नहीं कहता। अवश्य ही ऐसे सलाह अपने अनुभव के आधार पर दिए गए होंगे। पर मेरा अनुभव इन सभी से बिलकुल भिन्न है। मैंने श्रीनगर से लेह तक की तक़रीबन ४३५ km की दुरी जो कई घाटियों और पहाड़ों की चोटियों को छूकर गुजरता है १३ घंटे में पूरा करने में सफल रहा। इसका श्रेय मैं मुख्यतः श्रीनगर से प्रातः निकल जाने के अपने निर्णय को देता हूँ जिसकी वजह से मैं "Zoji La-जोजी-ला" पर ट्रक और सेना की गाड़ियों का काफिला शुरू होने से पहले ही पार करने में सफल रहा। एक दिन में ४३५ km का सफर तय करना इसलिए भी संभव हो सका क्योंकि मैं अपनी गाड़ी खुद चला रहा था और अपनी सुविधानुसार आराम के लिए या खाने के लिहाज से रुकता था। लेह के लिए मोटर-साइकिल द्वारा पर्यटन भी जबरदस्त प्रचलन में है और मेरा भी मानना है कि मोटर-साइकिल से श्रीनगर-लेह के सफर को एक दिन में पूरा नहीं किया जा सकता है।
श्रीनगर से लेह के रास्ते में श्रीनगर से तक़रीबन ९० km की दुरी पर शैलानियों के लिए आकर्षण का एक और केंद्र है - "सोनमर्ग" जहाँ सुबह के वक्त आराम से २ घंटे में पहुंचा जा सकता है। सोनमर्ग को अपनी सुरम्य प्राकृतिक सौंदर्यता के कारण Meadow of Gold यानी सोने की घास का मैदान भी कहा जाता है।
ज़ोज़ी-ला की शीर्ष चोटी समुद्री तल से तक़रीबन ११७०० ft की ऊँचाई पर है। जोजी-ला पर बने सड़क के हालत का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि ३० km की लंबाई तय करने में मुझे ३ घंटे का समय लगा। कोई भी ऐसा हिस्सा नहीं था जहाँ १०० मीटर लंबा भी पक्का सड़क हो। पूरा रास्ता बड़े-बड़े पत्थर, मिटटी, पिघलते बर्फ के पानी की वजह से कीचड़ से भरा पड़ा था। कई स्थान तो ऐसे थे जहाँ सड़क इतनी संकरी थी कि एक बार में एक गाड़ी ही जा सकती है। ऐसे कई मौके आए जहाँ सामने से आ रहे ट्रक को जगह देने के लिए मुझे अपनी गाड़ी को पीछे लेना पड़ा। मेरे गाड़ी का दाहिने हाथ का पीछे देखने वाला शीशा पहले ही एक मोटर-साइकिल सवार को बचाने के चक्कर में दूसरे ट्रक से टक्कर के दौरान टूट चूका था। ऐसे हालात में अंदाज़ से गाड़ी को पीछे करना और ट्रक के निकलने लायक जगह बनाना बेहद ही खतरनाक हो सकता था। एक छोटी सी गलती मुझे हजारों फीट गहरी घाटी में गिरा सकती थी। जोजी-ला पर कई स्थानों पर भारी वाहन ख़राब हो जाने की स्थिति में दोनों तरफ लम्बी जाम लग जाती है। जोजी-ला अपने इन्हीं खतरनाक रास्तों के लिए भी जाना जाता है।
अत्यधिक बर्फ़बारी के कारण जोजी-ला वाहनों के आवागमन के लिए दिसंबर माह से बंद कर दिया जाता है जिसे फिर मरम्मत के बाद मध्य-मई या जून में खोला जाता है।
समुद्रतल से तक़रीबन ११००० ft की ऊंचाई पर स्थित लेह में ऑक्सीजन की बहुत कमी होती है। इस कारण जो शैलानी वहां सीधा हवाई यात्रा करके पहुँचते हैं उन्हें उस माहौल में कभी-कभी परेशानी (जैसे सर-दर्द, सांस फूलना, उलटी आना, नींद नहीं आना वगैरह) का सामना करना पड़ता है। ऑक्सीजन की कमी से होने वाली परेशानी से वह सभी शैलानी बच जाते हैं जो सड़क मार्ग से श्रीनगर से लेह पहुँचते हैं। यह इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि श्रीनगर से लेह के सफर में जोजी-ला (११७०० ft), नामकी-ला (१२२००ft ) एवं फोटु-ला (१३४७९ ft) को छोड़कर आप धीरे-धीरे ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं और आपका शरीर उस माहौल में स्वतः ढलता (acclimatize) जाता है।
लेह / लद्दाख की यह मेरी दुसरी यात्रा थी। प्रथम बार मैंने दिल्ली से हवाई यात्रा की थी। हालाँकि दोनों बार मुझे ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
रास्ते में कारगिल पहुँचने से पहले द्रास से गुजरना पड़ता है। द्रास को विश्व में दूसरे सबसे ठंड स्थान (जहाँ आबादी रहती है) के लिए भी जाना जाता है। यहाँ जनवरी १९९५ में न्यूनतम तापमान शुन्य से ६० डिग्री कम मापा गया था।
कारगिल लद्दाख क्षेत्र में मुस्लिम बहुल आबादी क्षेत्र है। २१० km की यात्रा पूर्ण करने के बाद मैंने विश्राम और खाने के लिहाज से कारगिल में यात्रा को थोड़ी देर के लिए विराम देने की सोची। परंतु सड़क किनारे बसे दुकानों में जानवरों के कटे हुए मांस को लटकते हुए देखने के बाद मेरी वहाँ पर विश्राम करने की इक्छा समाप्त हो गई। पता चला वहां सिर्फ माँसाहारी भोजनालय ही हैं। मैंने अपनी यात्रा जारी रखना उचित समझा और शाम को ७.३० बजे लेह पहुँच गया।
पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध के दौरान ऑपेरशन विजय में शहीद हुए सैनिकों के नाम से स्मारक बनाया गया था।
पुरे सफर में नंगे परंतु बेहद ही खूबसूरत पहाड़ों का नज़ारा रोमांचित करता रहा और मुझे ऊर्जा प्रदान करता रहा आगे बढ़ते रहने को। सफर में अकेला होता हुआ भी कभी इस बात की कमी महसूस नहीं हुई कि किसी और का साथ होना चाहिए था। खूबसूरत पर्वतों और घुमावदार घाटी ने कभी अकेला होने ही नहीं दिया। हमने बचपन में पढ़ा था कि आसमान का रंग नीला होता है। महानगरों में ऊँची इमारतों के बीच रहते हुए हमने आसमान को कभी नीला देखा ही नहीं। आसमान का नीला रंग आप साफ़-साफ समूचे लद्दाख क्षेत्र में देख सकते हैं। किसी ने सच ही कहा है कि लद्दाख क्षेत्र की प्राकृतिक खूबसूरती से आप प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकते। मैंने कई ब्लॉग्स में पढ़े थे कि सड़क मार्ग से लद्दाख क्षेत्र की यात्रा करना जीवन-काल में ऐसा अवसर है जिसे सभी को अवश्य करना चाहिए और मैंने भी अपनी यात्रा पूर्ण करने पर इस कथन को शत-प्रतिशत सत्य पाया।
मैंने कई पत्रिका एवं ब्लॉग्स वेबसाइट पर पढ़ें थे कि श्रीनगर से लेह तक की सफर दो या तीन दिनों में तय करना उत्तम रहता है। जिन्होंने भी यह सलाह दी है मैं उन्हें गलत नहीं कहता। अवश्य ही ऐसे सलाह अपने अनुभव के आधार पर दिए गए होंगे। पर मेरा अनुभव इन सभी से बिलकुल भिन्न है। मैंने श्रीनगर से लेह तक की तक़रीबन ४३५ km की दुरी जो कई घाटियों और पहाड़ों की चोटियों को छूकर गुजरता है १३ घंटे में पूरा करने में सफल रहा। इसका श्रेय मैं मुख्यतः श्रीनगर से प्रातः निकल जाने के अपने निर्णय को देता हूँ जिसकी वजह से मैं "Zoji La-जोजी-ला" पर ट्रक और सेना की गाड़ियों का काफिला शुरू होने से पहले ही पार करने में सफल रहा। एक दिन में ४३५ km का सफर तय करना इसलिए भी संभव हो सका क्योंकि मैं अपनी गाड़ी खुद चला रहा था और अपनी सुविधानुसार आराम के लिए या खाने के लिहाज से रुकता था। लेह के लिए मोटर-साइकिल द्वारा पर्यटन भी जबरदस्त प्रचलन में है और मेरा भी मानना है कि मोटर-साइकिल से श्रीनगर-लेह के सफर को एक दिन में पूरा नहीं किया जा सकता है।
मोटरसाइकिल से लेह-श्रीनगर |
मोटरसाइकिल से लेह-श्रीनगर |
सोनमर्ग के पहाड़ |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग का दृश्य |
सोनमर्ग को लद्दाख क्षेत्र का प्रवेश द्वार भी कहते हैं।जोजी-ला पार करते ही लद्दाख क्षेत्र शुरू हो जाता है और जोजी ला तक जो हरियाली मिलती है वह अचानक से बंजर भूमि और नंगे पर्वतों में परिवर्तित हो जाती है।
सोनमर्ग से लेह की दुरी दर्शाता बोर्ड |
जोजी-ला से लेह की दुरी दर्शाता बोर्ड |
कारगिल / लद्दाख क्षेत्र का प्रवेश द्वार |
जोजी-ला का सड़क |
जोजी-ला का सड़क |
जोजी-ला |
जोजी-ला |
समुद्रतल से तक़रीबन ११००० ft की ऊंचाई पर स्थित लेह में ऑक्सीजन की बहुत कमी होती है। इस कारण जो शैलानी वहां सीधा हवाई यात्रा करके पहुँचते हैं उन्हें उस माहौल में कभी-कभी परेशानी (जैसे सर-दर्द, सांस फूलना, उलटी आना, नींद नहीं आना वगैरह) का सामना करना पड़ता है। ऑक्सीजन की कमी से होने वाली परेशानी से वह सभी शैलानी बच जाते हैं जो सड़क मार्ग से श्रीनगर से लेह पहुँचते हैं। यह इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि श्रीनगर से लेह के सफर में जोजी-ला (११७०० ft), नामकी-ला (१२२००ft ) एवं फोटु-ला (१३४७९ ft) को छोड़कर आप धीरे-धीरे ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं और आपका शरीर उस माहौल में स्वतः ढलता (acclimatize) जाता है।
श्रीनगर-लेह मार्ग पर नामिका-ला चोटी की समुद्रतल से ऊंचाई दर्शाता बोर्ड |
श्रीनगर-लेह मार्ग पर फोटु-ला चोटी की समुद्रतल से ऊंचाई दर्शाता बोर्ड |
रास्ते में कारगिल पहुँचने से पहले द्रास से गुजरना पड़ता है। द्रास को विश्व में दूसरे सबसे ठंड स्थान (जहाँ आबादी रहती है) के लिए भी जाना जाता है। यहाँ जनवरी १९९५ में न्यूनतम तापमान शुन्य से ६० डिग्री कम मापा गया था।
द्रास विश्व का दूसरा सबसे ठंडा स्थान |
पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध के दौरान ऑपेरशन विजय में शहीद हुए सैनिकों के नाम से स्मारक बनाया गया था।
तोलोलिंग पर्वत श्रृंखला-कारगिल युद्धस्थल |
कारगिल-युद्ध में उपयोग में लिए गए बोफोर्स गन |
कारगिल युद्ध में शहीद योद्धाओं की स्मृति स्मारक |
कारगिल युद्ध में शहीद योद्धाओं की स्मृति स्मारक |
कारगिल युद्ध में शहीद योद्धाओं की स्मृति स्मारक |
कारगिल युद्ध में शहीद योद्धाओं की स्मृति स्मारक |
कारगिल युद्ध में शहीद योद्धाओं की स्मृति स्मारक |
कारगिल युद्ध में शहीद योद्धाओं की स्मृति स्मारक |
कारगिल युद्ध में शहीद योद्धाओं की स्मृति स्मारक |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
पहाड़ों के बीच से बहता नदी-- पानी इतनी शुद्ध कि उसका रंग हरा है |
श्रीनगर-लेह मार्ग पर कारगिल के नजदीक साइकिल पर विदेशी शैलानी जोड़ा |
खूबसूरत पहाड़ |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
लद्दाख क्षेत्र में पर्वत |
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